कल्याण सिंह: प्रखर हिन्दूवादी से वर्ग विशेष के नेता तक की राजनीतिक यात्रा

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Lucknow । नब्बे के दशक के प्रखर हिंदुत्ववादी नेता कल्याण सिंह नहीं रहे। कल्याण सिंह 89 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार थे। लखनऊ के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी समेत सभी पार्टियों के नेताओं ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की है। सीएम योगी ने उत्तर प्रदेश में तीन दिन के राजकीय शोक और 23 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश कि घोषणा की है।

कल्याण सिंह का जन्म अलीगढ़ ज़िले की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में O5 जनवरी 1935 को एक किसान परिवार में हुआ था। वह बेहद कम उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये थे। कल्याण सिंह ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद शिक्षक बन गए। हालांकि उनकी राजनीतिक यात्रा जारी रही।

वर्ष 1967 में कल्याण सिंह बतौर जनसंघ उम्मीदवार अतरौली विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित हुए। इसके बाद वर्ष 1980 तक वह लगातार इस सीट से निर्वाचित होते रहे। जेपी आंदोलन के समय जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया और 1977 में यूपी में जनता पार्टी की सरकार बनी तो कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री बने। हालांकि1980 में कल्याण सिंह अतरौली विधानसभा सीट से चुनाव हार गए।

वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी कागठन हुआ। कल्याण सिंह को नवगठित पार्टी के प्रदेश महामंत्री बनाये गए। इसके बाद अयोध्या आंदोलन के दौरान कल्याण सिंह कि किस्मत एक बार फिर चमकी और उनकी छवि राम-भक्त नेता की हो गई। देखते ही देखते कल्याण सिंह बीजेपी के शीर्ष नेताओं में शुमार हो गए।

अयोध्या आंदोलन का नेतृत्व करते हुए कल्याण सिंह ने बीजेपी को आम हिन्दुओं की पार्टी के तौर पर प्रतिष्ठापित किया। महज़ एक साल बाद हुए 1991 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। मुख्यमंत्री बनने के बाद कल्याण सिंह ने कैबिनेट मंत्रियों के साथ अयोध्या का दौरा कर राम मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया।

इस तरह कल्याण सिंह ने यूपी समेत पुरे देश में हिन्दुत्व की राजनीति को परवान चढ़ाया। छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस उनके कार्यकाल की सबसे अहम घटना थी। इसके तत्काल बाद बाद कल्याण सिंह की सरकार बर्ख़ास्त कर दी गई। इसके बाद यूपी कि सत्ता में आपसी के लिए बीजेपी को पांच वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा।

वर्ष 1997 में कल्याण सिंह दोबारा यूपी के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका यह कार्यकाल तमाम राजनितिक विद्रूपताओं से भरा रहा। पार्टी के अंदरूनी कलह के चलते दो साल बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया। इसके बाद कल्याण सिंह ने बीजेपी से इस्तीफ़ा देकर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी नाम से अलग पार्टी का गठन किया। इस तरह कल्याण सिंह ने बल्कि राम मंदिर आंदोलन से भी दूरी बना ली। इस तरह कल्याण सिंह के राजनीतिक अवसान कि शुरुआत हो गई।

राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते कल्याण सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अपमान किया। उनके लिए वह बेहद अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते रहे। कल्याण सिंह ने वाजपेयी के लिए भुलक्कड़, बुझक्कड़, पियक्कड़ शब्द का इस्तेमाल किया था, जो काफी दिनों तक चर्चा में रहा। ध्यातव्य है कि वाजपेयी का सम्मान बीजेपी के साथ ही विरोधी दलों के नेता और आम जनता करती थी। यह भी उल्लेखनीय है कि 2004 में कल्याण सिंह बीजेपी में वापसी भी वाजपेयी जी ने ही कराई थी।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह ने अपनी राजनीति की शुरुआत प्रखर हिन्दूवादी नेता के तौर पर की थी। जनसंघ, जनता पार्टी और फिर बीजेपी में रहते हुए वो विधायक और यूपी के मुख्यमंत्री भी बने। हालांकि राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते जल्द ही उनका पराभव शुरू हो गया और वह एक प्रखर हिन्दूवादी नेता से वर्ग विशेष के नेता बनकर रह गए।

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