खिचड़ी एक सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक भोजन है। भारतीय भोज्य परंपरा में खिचड़ी एक संस्कृति है। पर्व है। आतिथ्य संस्कार है। सादगी की सूघड़ परंपरा है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का पर्व भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। इस दिन खासतौर से खिचड़ी बनाई और खिलाई जाती है। इस दिन खिचड़ी के दान का विशेष महत्व है। भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में प्रायः सभी पर्वों पर मेलों का आयोजन होता है। मकर संक्रांति के दिन भी पूरे देश में जगह-जगह में खिचड़ी मेला लगता है। खिचड़ी मेले का भी अपना इतिहास है।
जनश्रुतियों के अनुसार खिचड़ी पर्व का प्रारंभ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से हुआ था। यह मकर संक्रांति को होता है। लोक मान्यता है कि बाबा गोरखनाथ जी भगवान शिव के अवतार थे और उन्होंने ही खिचड़ी को भोजन के रूप में प्रचलित किया। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कथा है।
अब कमजोर शरीर से नाथपंथी खिलजियों से भला कैसे लड़ते। इसका समाधान ढूंढा जाने लगा। एक दिन बाबा गोरखनाथ ने अपने योगियों को दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने को कहा। देखते ही देखते एक ऐसा व्यंजन तैयार हुआ जो झट-पट बन गया और स्वाद व सुगंध के साथ पौष्टिक भी था। इसे खाने से नाथ योगी अपने भीतर ऊर्जा और ताजगी महसूस कर रहे थे। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम ‘खिचड़ी’ रखा। इस तरह नाथ योगियों ने बहादुरी से लड़कर समाज को खिलजियों के आतंक से बचाया। इसीलिए गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
आज भी गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ के मंदिर के समीप मकर संक्रांति के दिन से खिचड़ी मेला शुरू होता है, जो कई दिनों तक चलता है। इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग अर्पित किया जाता है और भक्तों को प्रसाद रूप में दिया जाता है। इसी तर्ज़ पर देशभर में खिचड़ी मेले लगते हैं। इन दिन ब्राह्मणों को खिचड़ी खिलाने और उन्हें दान देना अत्यंत शुभ माना जाता है। हिंदी पट्टी के ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा आज भी बखूबी निभाई जाती है।