हमने, जेनेवा एक्ट और ‘Prisnor Of War यानी युद्ध बंदी जैसे कुछ शब्द टीवी डिबेट और सोशल मीडिया पर सुना और पढ़ा होगा. इन शब्दों का प्रयोग कर बताया जाता है कि कैसे युद्धबंदी को जेनेवा एक्ट के अंतर्गत रिहा किया जाएगा. अब बात युद्ध बंदी की हो रही है, तो इसका पिछले इतिहास भी उठा के देख लिया जाए.
बात करते हैं 1971 युद्ध की जब भारत के 54 जवान पाकिस्तान की क़ैद में चले गए थे, जिनको आज भी ‘The Missing 54’ के नाम से जाना जाता है. वहीं पाकिस्तान इस बात को मानने को तैयार नहीं होता कि उसके पास भारत के 54 जंगी कैदी मौजूद हैं.
ये सभी जवान, भारत की थल सेना और वायु के है. इसमें 30 जवान थल सेना और 24 जवान वायु सेना के हैं. आर्मी के जवानों में से एक लेफ़्टिनेंट, 2 सेकेंड लेफ़्टिनेंट, 6 मेज़र, 2 सुबेदार, 3 नायक लेफ़्टिनेंट, 1 हवलदार, 5 गनर और 2 सिपाही हैं. वायु सेना के लापता जवानों में 3 फ़्लाइट ऑफ़िसर्स, 1 विंग कमांडर, 5 स्कॉ़ड्रन लीडर और 16 फ्लाइट लेफ़्टिनेंट हैं.
इस सूची को तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री समरेंद्र कुंडु ने एक सवाल के जवाब में 1979 की लोकसभा में पेश किया था.
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के भी दरवाज़े इन जवानो के परिवारों ने खटखटाए लेकिन कोई भी कायवाई नहीं हुई.
गौरतलब है कि 1971 के युद्ध में भारत ने लगभग पूरी पाकिस्तानी फौज़ को कब्ज़ें में ले लिया था, जिसको बाद में शिमला समझौते अंतर्गत रिहा कर दिया गया था.
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वही करीब 18 साल तक पाकिस्तान इस बात का इंकार करता रहा कि उनकी जेलों में कोई भी भारतीय जवान हैं.
लेकिन साल 1989 में तब की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने अपने भारतीय दौरे में कहा था कि लापता जवान उनके जेलों में ही है. वहीं जब भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी 1989 में इस्लामाबाद दौरे पर गए तो उन्होंने भी लापता जवानो का मुद्दा वहां उठाया.
पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ कुछ सालों के अंदर ही अपने वादों से पलटते हुए जवानों के पाकिस्तान में मौजूद होने के बात से इंकार करने लगे.
The Diplomat ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि 1972 में टाइम पत्रिका ने पाकिस्तान जेल के भीतर कैदियों की तस्वीर छापी थी. परिवार वालों ने भी जहां उन्हें शहीद मान लिया था इस तस्वीर को देखने के बाद उनको पहचान लिया.
पूर्व BBC संवाददाता और बेनज़ीर भुट्टो की जीवनी लिखने वाले Victoria Schoffield ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि पाकिस्तानी वकील ने उन्हें बताया था कि भारतीय जंगी कैदी लाहौर के कोट लखपत जेल में क़ैद हैं.
The Diplomat के 2015 के रिपोर्ट के अनुसार, ही एक अमेरिकी जनरल Chuck Yeager ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने निजी तौर भारतीय जंगी कैदियों से पाकिस्तान में बात की थी.
1 सितंबर, 2015 को सुप्रिम कोर्ट ने केंद्र सरकार को तलब करके 54 लापता सैनिकों के बारे में पूछा, कोर्ट ने पूछा, ‘क्या वे लोग अभी भी ज़िंदा हैं?’, इसका जवाब सोलिसेटर जनरल रंजित कुमार ने दिया, ‘हमे नहीं पता.’.
उन्होंने अपने जवाब में कहा कि हम मानते हैं कि उनकी मौत हो गई है क्योंकि पाकिस्तान अपने जेल में उनकी मौजूदगी से इंकार कर रहा है.
जिनेवा कन्वेंशन की शर्तें तभी लागू होती हैं, जब दोनों देश के बीच घोषित रूप से युद्ध नहीं चल रहा हो. ख़ासतौर पर 1949 में हुए तीसरे जिनेवा कन्वेंशन में युद्ध कैदियों के साथ किए जाने वाले बर्ताव को भी तय किया गया था.