भारत पर्वों का देश हैं। यहां हर दिन पर्व मनाये जाते हैं। सभी का संबंध प्रकृति और पुराणों से है। भारत के तमाम पर्वों में कुंभ पर्व की विशेष महत्ता है। आइये बताते हैं कि कुंभ क्या है? कुंभ का अर्थ है कलश अर्थात घड़ा। इस पर्व का संबंध समुद्र मंथन में निकले अमृत कलश से है। अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों में युद्ध शुरू हो गया। देवता अमृत कलश को लेकर भागे। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें धरती की तीन पवित्र नदियों गंगा, गोदावरी और क्षिप्रा में गिरी थीं। अमृत की ये बूंदें जिन-जिन स्थानों पर गिरी थी, उन-उन स्थानों ( हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन ) पर कुंभ का आयोजन होता है।
युद्ध के दौरान सूर्य, चंद्र और शनि आदि देवताओं ने अमृत कलश की रक्षा की थी। अतः उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र, सूर्य आदि ग्रह जब आते हैं, तब कुंभ का योग होता है और चारों पवित्र स्थलों पर प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
परंपरा के अनुसार प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल में हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में कुंभ का आयोजन किया जाता है। इस तरह एक स्थान पर प्रत्येक 12 वर्ष बाद ही कुंभ का आयोजन होता है। जैसे इस साल हरिद्वार में कुंभ का अयोजन हो रहा है, तो अब तीन साल बाद प्रयाग और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा। उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा। उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है।
ज्योतिष के अनुसार सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। इसके अलावा सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व का आयोजन गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। इसे महाकुंभ भी कहते हैं, क्योंकि यह योग 12 वर्ष बाद ही आता है।
इसी तरह हरिद्वार का सम्बन्ध मेष राशि से है। कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का भी आयोजन होता है।
पौराणिक ग्रंथों में भी कुंभ एवं अर्ध कुंभ के आयोजन को लेकर विशद विश्लेषण उपलब्ध है। ग्रहों के अद्भूत चाल के कारण इस बार हरिद्वार का कुंभ मेला प्रभावित हो रहा है। यह इस वर्ष 11वें साल बाद पड़ रहा है, जबकि यह हर 12वें वर्ष आयोजित होता है।