जानें- सूर्य पुत्र शनिदेव को उनकी पत्नी ने क्यों दिया श्राप

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आज शनिवार हैं हम आज के दिन शनि के प्रकोप से बचने के लिए उनकी पूजा आराधना करते हैं। सूर्य पुत्र शनिदेव को देवताओं का दण्डाधिकारी माना जाता हैं। और यह भी माना जाता हैं कि भगवान शिव ने शनि देव की तपस्या से प्रमन्न होकर शवि देव को यह पद प्रदान किया था।

इसी कारण ही शनि देव प्रत्येक व्यक्ति को उसके किए गए अच्छे और बुरे कर्मों के हिसाब से फल प्रदान करते हैं। व्यक्ति के भूलवश किए हुए गलत कार्य भी शनि देव के दण्ड विधान से बच महीं पाते।

शनिदेव के इसी गुण के कारण मनुष्य क्या देवता भी उनसे डरते हैं। पर क्या आपको मालूम है कि शनिदेव को भी अपनी गलती के लिए श्राप का भागी होना पड़ा था। आइए जानते हैं इस पौराणिक कथा को..

ब्रह्मपुराण की कथा के अनुसार शनिदेव बचपन से भगवान कृष्ण के अन्नय भक्त थे। वो अपनी दिनचर्या का अधिकांश समय कृष्ण भगवान की पूजा में ही बिताते थे। युवा आवस्था में उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से कर दिया गया।

शनिदेव की पत्नी परम् पतीव्रता और तेजस्वी थी। परंतु शनिदेव विवाह के बाद भी सारा दिन भगवान कृष्ण की आराधना में ही मग्न रहने थे। एक रात्रि शनिदेव की पत्नी ऋतुस्नान करके शनिदेव के पास पुत्र प्राप्ति की इच्छा से गईं। लेकिन ध्यान में मग्न शनि देव ने उनकी ओर देखा भी नहीं। इसे अपना अपमान समझकर उनकी पत्नी से शनिदेव को श्राप दे दिया।

सिर नीचा करके क्यों चलते हैं शनिदेव पढ़े जरुर-

शनिदेव को उनकी पत्नी ने श्राप देते हुए कहा कि वो जिसे भी नज़र उठा कर देखेंगे वो नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया और अपनी गलती की क्षमा मांगी। शनिदेव की पत्नी को भी अपनी गलती का एहसास हुआ। लेकिन अपने श्राप को निष्फल करने की शक्ति उनके पास नहीं थी। इस कारण शनिदेव सिर नीचा करके चलते हैं ताकि अकारण ही किसी का कोई अनिष्ट न हो।

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