खिचड़ी पर्व की पौराणिक मान्यता

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सबसे पहले खिचड़ी किसने, क्यों, कब और कैसे बनाई गई, इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। अवध की कहावतों, भजनों और लोकगीतों में विवाह के अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा अनुजों के साथ जनकपुर में खिचड़ी खाने का उल्लेख आता है। आज भी अवध समेत पूरी हिंदी पट्टी में विवाह के अवसरों पर दूल्हे को खिचड़ी खिचड़ी खिलाने की परंपरा है। धीरे-धीरे यह भारतीय व्यंजनों का अहम हिस्सा बन गई। खिचड़ी भारतीय धर्म और संस्कृति का वाहक बनी हुई है।

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पुराणों के अनुसार सबसे पहले भगवान शिव ने खिचड़ी बनाई थी और भगवान विष्णु ने इसे खाया था और इस भोजन को स्वादिष्ट के साथ ही सुपाच्य बताया था। लोक मान्यता के अनुसार भी मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा का आरंभ भगवान शिव ने किया था। इसलिए यह अहम लोकपर्व बन गया। खिचड़ी भगवान जगन्नाथ के 56 भोग में भी शामिल है। ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है।

मकर संक्रांति के दिन गोरखपुर में गोरक्षनाथ मंदिर में आदियोगी भगवान गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा है। लोक मान्यताओं के अनुसार यह परंपरा त्रेता युग से अनवरत चली आ रही है। मकर संक्रांति के दिन गोरखनाथ मंदिर के महंत सबसे पहले बाबा गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाते हैं। उसके बाद नेपाल राजघराने की खिचड़ी चढ़ाई जाती है। मकर संक्रांति के दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने के संदर्भ में एक पौराणिक कथा है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गुरु गोरखनाथ एक सिद्ध संत थे। एक बार गुरु गोरखनाथ भिक्षाटन करते हुए हिमाचल प्रदेश के कागड़ा जिले के मशहूर ज्वाला देवी मंदिर गए। मंदिर में बाबा गोरखनाथ ने अपनी भक्ति से देवी को प्रसन्नकिया। बाबा के तप से प्रसन्न होकर देवी जी प्रकट होकर उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया। वहां पर विभिन्न तरह के परोसे गए व्यंजन को बाबा गोरखनाथ ने ग्रहण करने से मना कर दिया और भिक्षा में प्राप्त चावल-दाल से बना भोजन ग्रहण करने को कहा।

गुरु गोरखनाथ ने देवी को भोजन बनाने के लिए कहकर वहां से भिक्षाटन के लिए निकल पड़े। वे भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर के पास राप्ती और रोहिणी नदी के संगम पर आ गए। उन्होंने वहीं पर अपना अक्षय पात्र रख दिया और साधनारत हो गए। उस समय मकर संक्रांति का पर्व आया तो लोगों ने बाबा के पात्र में चावल और दाल डालने लगे, लेकिन वह पात्र भरता ही नहीं था। लोगों ने इसे चमत्कार मानकर बाबा की पूजा प्रारंभ कर दी। उसके बाद से बाबा गोरखनाथ वहीं के होकर रह गए। इस तरह नाथ योगी सम्प्रदाय के महान प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ ने अपनी अलौकिक आध्यात्मिक गरिमा से इस स्थान को पवित्र किया था, इसलिए योगेश्वर गोरखनाथ के पुण्य स्थल के कारण इस स्थान का नाम ‘गोरखपुर’ पड़ा।

इस घटना के बाद से हर मकर संक्रांति पर बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाई जाने लगी। ऐसी मान्यता है कि बाबा गोरखपुर आ गए, उधर ज्वाला देवी मंदिर में आज भी उनकी प्रतीक्षा में खिचड़ी बनाने के लिए पानी अधहन खौल रहा है। लोक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने से भक्तों की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

महायोगी गुरु गोरखनाथ की यह तपस्याभूमि प्रारंभ में एक तपोवन के रूप में रही थी और इस तपोवन में योगियों के निवास के लिए कुछ छोटे- छोटे मठ बने थे। मंदिर का निर्माण बाद में हुआ। आज हम जिस विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन कर हर्ष और शांति का अनुभव करते हैं, वह ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज जी की ही कृपा से है। उनके बाद पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज के संरक्षण में श्री गोरखनाथ मंदिर को विशाल आकार-प्रकार, भव्यता तथा पवित्र रमणीयता प्राप्त हुई। वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के संरक्षण में गोरक्षपीठ मठ आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक आकर्षण का वैश्विक का केंद्र बन चुका है।

 

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