शरद ऋतु में भारत के अलग-अलग प्रांतों में कई पर्व मनाएं जाते हैं। इन्हीं में से एक पर्व है लोहड़ी। यह फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा एक विशेष पर्व है। लोहड़ी साल की सबसे लंबी रात का उत्सव भी है। लोहड़ी खरीफ की फसल के कटने की खुशी में मनाई जाती है।
लोहड़ी पर्व वसंत ऋतु के आगमन का भी संदेश देता है। यह मुलरुप से किसान परिवारों में सबसे बड़ा उत्सव भी है। इसी दिन से पंजाबी किसानों का नया वित्तीय साल भी शुरू होता है। लोहड़ी उत्सव को लेकर सारी मिथक भी हैं। भारत में लोहड़ी पर्व की अवधारणा भी मकर संक्रांति जैसी ही है। इसलिए लोहड़ी और मकर संक्रांति के पर्व में बहुत साड़ी समानताएं भी हैं।
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों से मिलकर बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहा जाता है। इस दिन मकर संक्रांति की तरह रेवाड़ी, गज़क, लावा और तिल-गुड़ खाने और बांटने का महत्व है।
देश के कई राज्यों खासतौर से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखण्ड और जम्मू में मनाया जाता है। पंजाब में तो इस दिन धूम ही रहती है। यह पारंपरिक पर्व लोहड़ी फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा एक विशेष पर्व है। पंजाब में यह पर्व नए साल की शुरुआत में फसलों की कटाई के उपलक्ष्य के तौर पर मनाई जाती है। इस अवसर पर जगह-जगह अलाव जलाकर उसके आसपास नृत्य भी किए जाते हैं।
नृत्य के दौरान लड़के जहां भांगड़ा करते हैं, वहीं लड़कियां गिद्धा नृत्य करती हैं। इस विशेष पर्व में जिस तरह होलिका दहन की जाती है ठीक उसी प्रकार लोहड़ी के अवसर पर अलाव जलाकर नृत्य के साथ इस त्यौहार को मानते हैं। इस दिन सूर्य ढलते ही खेतों में बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। इस जलते हुए आलव के पास खड़े होकर लोग मस्ती के साथ नाचते और झूमते हैं। इसलिए इस त्योहार में अलाव का महत्त्व बढ़ जाता है।
लोक मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी पर्व मुख्य रूप से सूर्य और अग्नि देव को समर्पित है। लोहड़ी के पावन अवसर पर लोग फसलों को अग्नि देवता को अर्पित करते हैं, क्योंकि इस दिन से ही घरों में फसल कटकर आने लगते हैं।
इसके अतिरिक्त इस दिन अग्नि में तिल, रेवड़ियाँ, मूंगफली, गुड़ और गजक आदि भी अग्नि को समर्पित किया जाता है।
इस दिन लोग लोहड़ी की ऊंची उठती अग्नि की लपटों के चारों ओर एकत्रित होकर अलाव की परिक्रमा करते हैं तथा अग्नि को पके हुए चावल, मक्का के दाने तथा अन्य चबाने वाले भोज्य पदार्थ अर्पित करते हैं।
‘आदर आए, दलिदर जाए’ इस प्रकार के गीत व लोकगीत इस पर्व पर गाए जाते हैं। ऐसा करने से यह माना जाता है कि देवताओं तक भी फसल का कुछ अंश पहुँचता है।
लोहड़ी के दिन लोग आग के चारों ओर बैठकर लोग आग में तिल, चावल, रेवड़ी, खील, गज्जक, डालते हैं। विश्वास किया जाता है कि घर में सम्मान आए और गरीबी दूर जाए। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उनके लिए लोहड़ी बहुत खास होती है। लोहड़ी के दिन सबसे ज्यादा लोकगीत गाए जाते हैं। दरअसल लोकगीतों के तहत सूर्य भगवान को धन्यवाद दिया जाता है, जिससे कि आने वाले साल में भी लोगों को उनका सरंक्षण मिलता रहे। इसके अलावा महिलाएं गिद्दा गाती हैं। इस दिन पतंग भी उड़ाई जाती है।