वरिष्ठता सूची में चौथे नंबर वाले डॉक्टर को निदेशक बनाने के लिए मंत्री धर्म सिंह सैनी ने खेला ये खेल

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लखनऊ। आयुष विभाग (AYUSH department) उत्तर प्रदेश भ्रष्टाचार को लेकर मीडिया की सुर्खियां बटोर रहा है।बात चाहे संविदा पर डॉक्टरों की भर्ती का हो या फिर दवाइयों की खरीद-फरोख्त का, विभागीय मंत्री से लेकर विभाग के आला-अफसर भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। कोविड-19 को लेकर देश महामारी से जूझ रहा है ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार की गंभीरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि तक़रीबन एक साल बीतने को है पर होम्योपैथी विभाग में कोई नियमित निदेशक की तैनाती नहीं हो पायी।

minister dharm singh saini

हद तो यह है कि कार्यकारी निदेशक भी ताश के पत्तों की तरह फेंटे जा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो मंत्री धर्म सिंह सैनी ने अपने चहेते व वरिष्ठता क्रम में चौथे नंबर के डॉक्टर को निदेशक बनाने के लिए विभाग में यह उठा पटक मचा रखी है।

डॉ वी के विमल होम्योपैथी विभाग के अंतिम नियमित निदेशक थे। उन्हें बीते दिसंबर में सेवानिवृत्त होना था। लेकिन संविदा भारतियों के मामले में भ्रष्टाचार के आरोपों से लगतातार घिरने के कारण उन्हें सेवानिवृत्ति के पहले ही पद से हटना पड़ा।

इसके बाद डॉ आनंद चतुर्वेदी को प्रभार सौंपा गया, क्योंकि वह वरिष्ठता में सबसे ऊपर थे। लेकिन इनके पास भी निदेशक का प्रभार कुछ ही समय रहा। वैसे डॉ. चतुर्वेदी कानपुर कॉलेज के प्रिंसिपल हैं। डॉ चतुर्वेदी प्रमुख सचिव प्रशांत त्रिवेदी की पसंद बताये जाते हैं।

विभाग के विशेष सचिव राजकमल यादव के पास भी निदेशक होमियोपैथी का चार्ज कुछ समय तक रहा। नेशनल कॉलेज, लखनऊ के प्राचार्य डॉ. अरविंद वर्मा के पास भी कुछ समय तक चार्ज रहा।

यह खेल मंत्री धर्म सिंह सैनी सिर्फ़ इसलिए खेल रहे थे क्योंकि यदि किसी का एक वर्ष तक प्राचार्य का चार्ज भी दे कर रखा गया तब जिसे वह निदेशक बनाना चाहते हैं उसके राह में एक और रोड़ा आकर खड़ा हो सकता है। जिस डॉ. मनोज यादव को धर्म सिंह सैनी मंत्री बनाना चाहते है। वह वरिष्ठता में चौथे स्थान पर हैं। उनको निदेशक बनाने के लिए बाक़ायदा विभागीय प्रोन्नति समिति (डीपीसी) की बैठक भी बुलाई जा रही है।

चौंकाने वाली बात ये है कि इस बैठक में लोक सेवा आयोग से चुनकर प्राचार्य बन कर आई डॉ. हेमलता को नहीं बुलाया गया है। डॉ. हेमलता इलाहाबाद में प्राचार्य हैं। यही नहीं, डॉ यादव ने उच्च न्यायालय में कैवियेट भी दाखिल कर रखा है। ताकि उनके डीपीसी की बैठक में कोई व्यवधान न उत्पन्न हो सके।

हालाँकि डॉ. मनोज यादव की सभी प्रविष्टियाँ ठीक हैं। नीचे से अगर कभी किसी काल खंड में किसी अधिकारी ने प्रविष्टि कमजोर दी गयी तो ऊपर से वह उत्कृष्ट में तब्दील हो गयी। इनके रसूख का ही परिणाम है कि विभाग में प्रवक्ता के लिए तीन वर्ष का शैक्षणिक अनुभव अनिवार्य होता है, जबकि इनके मामले में इस अनिवार्यता को भी दरकिनार कर दिया गया।

यही नहीं, होम्योपैथी कॉलेज के प्राचार्यों की वरिष्ठता सूची वर्ष 2012 के बाद बनी ही नहीं। स्पष्ट है कि यह सूची अपडेट ही नहीं की गयी। जबकि वर्ष 2012 के बाद कई प्राचार्य बने हैं। ऐसा महज़ इसलिए किया गया ताकि अपर निदेशक पद पर तैनात डॉ. मनोज यादव के रास्ते में कोई अवरोध न रह जाये।

बात नियमों की करें तो डीपीसी करने से पहले वरिष्ठता सूची अपडेट की जानी चाहिए। नियमित निदेशक न होने की वजह से होम्योपैथी विभाग कोरोना काल में दूसरे तमाम राज्यों के विभागों की तरह काम नहीं कर पाया।

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