श्रीराम मंदिर को समर्पित रही नाथ पीठ, महंत अवेद्यनाथ ने चलाया था पहला फावड़ा

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अयोध्या/लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज ऐसे दिव्य महापुरुषों को याद ​किया, जो उनके नाथ सम्प्रदाय के तपस्वी रहे। श्री योगी ने श्रीराम मंदिर के लिए रामजन्मभूमि पर 05 अगस्त को होने वाले पूजन से दो दिन पूर्व यानी सोमवार को अपने दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजनाथ को याद किया। श्रीराम मंदिर आन्दोलन में नाथ सम्प्रदाय की गोरक्षपीठ समर्पित रही। सौभाग्य है कि यूपी की सत्ता पर आज नाथ सम्प्रदाय के गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी सत्तासीन हैं।

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सीएम योगी ने ट्वीट किया कि अवधपुरी में श्रीराम मंदिर की स्थापना हेतु दादागुरु ब्रह्मलीन मंहत दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज आजीवन समर्पित रहे, आज जबकि यह स्वप्न साकार हो रहा है तो हुतात्माद्वय को असीम संतोष की अनुभूति हो रही होगी।

अगले ट्वीट में लिखा कि ‘अवधपुरी प्रभु आवत जानी, भई सकल सोभा कै खानी’। कहा कि कई शताब्दियों की प्रतीक्षा अब पूर्ण हो रही है, व्रत फलित हो रहे हैं, संकल्प सिद्ध हो रहा है। सभी श्रद्धालुजन घर पर दीप जलाएं, श्रीरामचरितमानस का पाठ करें। प्रभु श्रीराम का आशीष सभी जनों को प्राप्त होगा।

राम मंदिर और नाथ पीठ के संघर्ष के इतिहास पर नजर डालें तो इन दोनों का नाता दो-चार नहीं बल्कि सात दशक पुराना है। मंदिर निर्माण से जुड़ी हर महत्वपूर्ण घटना की अगुवाई पीठ के महंतों ने की। 22-23 दिसंबर 1949 को जब विवादित ढांचे में रामलला का प्रकटीकरण हुआ। उस समय पीठ के तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ कुछ साधु-संतों के साथ वहां संकीर्तन कर रहे थे। इसे लेकर हुए मानस यज्ञ में भी दिग्विजयनाथ की भूमिका महत्वपूर्ण रही। उन्होंने ही पहली बार तत्कालीन संतों के साथ मिलकर राम जन्मभूमि उद्धार का संकल्प लिया। य​ह सिलसिला निरन्तर जारी रहा।

राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के पहले अध्यक्ष थे महंत अवेद्यनाथ

वास्तव में, पहली धर्मसंसद में प्रस्ताव पारित होने के बाद ‘राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति’ बनी तो महंत अवेद्यनाथ समिति के पहले अध्यक्ष बनाए गए। जब यह निर्णय हुआ तो महंत अवेद्यनाथ वहां मौजूद नहीं थे। उन्हें टेलिफोन के माध्यम से निर्णय की सूचना दी गई और उनसे अनुमति प्राप्त की गई। इस तरह अवेद्यनाथ के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी आई।

इतिहासविद प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में बताया कि महंत अवेद्यनाथ विवाद के हल के लिए सरकारों से सबसे ज्यादा बातचीत करने वालों में से एक ​थे। अवेद्यनाथ का संबंध गोरक्षपीठ से था। वैसे तो गोरक्षपीठ की पहचान सामाजिक आंदोलन को नेतृत्व और दिशा देने की है। सांस्कृति वाहक की है। लेकिन, बीसवीं शताब्दी के मध्य आते-आते गोरक्षपीठ राजनीति को भी रास्ता दिखाने लगी थी।

एक घटना ने अवेद्यनाथ को अन्दर से हिलाया

बताया कि महंत दिग्विजयनाथ के बाद अवेद्यनाथ ने जिम्मेदारी संभाली थी। 19 फरवरी, 1980 की घटना ने अवेद्यनाथ को अंदर से हिलाकर रख दिया था। वे व्यथित हुए। घटना मीनाक्षीपुरम की थी। वहां एक बड़ा धर्मांतरण हुआ था। महंत अवेद्यनाथ ने घटना पर कठोर शब्दों में आपत्ति दर्ज कराई और विरोध में ‘धर्मान्तरण नहीं राष्ट्रान्तरण’ का अभियान शुरू किया था। अवसर आया तो उन्होंने अयोध्या आंदोलन को भी सफल नेतृत्व दिया।

जब वीर बहादुर सिंह ने राममंदिर के राजीव मॉडल का खुलासा किया

‘नवोत्थान’ के सम्पादक बृजेश झा ने बताया कि जब अयोध्या आंदोलन जोर पकड़ने लगा तो राजनीतिक लाभ-हानी देखते हुए प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अवेद्यनाथ से संबंध जोड़ा। इसकी जिम्मेदारी उन्होंने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को दी। वीर बहादुर सिंह ने उनसे गोपनीय मीटिंग की और भव्य राममंदिर के राजीव मॉडल का खुलासा किया। लेकिन, कुछ कारणों से बात आगे नहीं बढ़ पाई। हालांकि, विहिप ने अभियान तेज करने की बात कही तो राजीव गांधी के निर्देश पर राम जन्मभूमि का ताला खोलने का रास्ता निकाला गया। इसकी सूचना अवेद्यनाथ के जरिए ही विहिप को दी गई।

शिलान्यास का पहला फावड़ा महंत अवेद्यनाथ ने चलाया

लंबे संघर्ष के बाद जब राममंदिर के शिलान्यास की बात प्रारंभ हुई तो अवेद्यनाथ महत्वपूर्ण कड़ी के तौर पर उससे जुड़े थे। आखिरकार 9 नवंबर, 1989 को शिलान्यास की तारीख निश्चित हुई। शिलान्यास प्रस्तावित मंदिर के सिंहद्वार पर हुआ और उसकी नींव की खुदाई के लिए पहला फावड़ा महंत अवेद्यनाथ ने चलाया।

सरकार से बातचीत करने वालों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति ​थे महंत अवेद्यनाथ

एक समय ऐसा भी आया, जब कांची शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने अयोध्या आंदोलन के लिए महंत अवेद्यनाथ को सरकार से बातचीत करने के लिए अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया। लेकिन, वीपी सिंह और मुलायम सिंह यादव की राजनीति में कोई परिणाम नहीं निकल पा रहा था। कारसेवा को लेकर गतिरोध पैदा हुआ तो वीपी सिंह के आग्रह पर महंत अवेद्यनाथ ने ही रास्ता निकाला और सरकार को करीब 120 दिनों का समय मिला। अयोध्या आंदोलन के दौरान सरकार से बातचीत करने वालों में वे सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे।

महंत अवेद्यनाथ के चंद्रशेखर और विश्वनाथ प्रताप सिंह से करीबी रिश्ते थे। वे संसद में गोरखपुर की जनता का प्रतिनिधित्व भी कर रहे थे। वे पांच बार लोकसभा के सदस्य रहे। उत्तराखंड के पौढ़ी जिले में जनमे कृपाल सिंह बिष्ठ 1940 में अवेद्यनाथ बन गए। फिर 1942 में दिग्विजय नाथ के उत्तराधिकारी नियुक्त हुए। 1969 में दिग्विजय नाथ की मृत्यु के बाद वे नाथपंथी की शीर्ष गद्दी गोरक्षनाथ पीठ पर बैठे। 6 दिसंबर, 1992 के ध्वंस के मुख्य आरोपियों में महंत अवेद्यनाथ भी रहे। चौथी लोकसभा में हिंदू महासभा के टिकट पर वे पहली बार लोकसभा में चुने गए। उसके बाद तीन बार लगातार यहीं से सांसद रहे।

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