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नई दिल्ली॥ इंडियन आर्मी ‘मेक इन इंडिया’ परियोजना के अंतर्गत भविष्य में अपनी युद्धक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए नई पीढ़ी के ‘फ्यूचर टैंक’ खरीदना चाहती है। रणनीतिक साझेदारी के अंतर्गत भारत में बनने वाले 1,770 फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल (एफआरसीवी) के लिए विदेशी आयुध कंपनियों को RFI जारी किया गया है।

INDIAN ARMY

इन टैंकों को चरणबद्ध तरीके से 2030 तक आर्मी में शामिल किया जाना है​​।​ ​दक्षिण कोरियाई कंपनी​ ऑर्डर मिलने पर ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत भारत में इन टैंकों का निर्माण करने के लिए तैयार है ​जिसका रणनीतिक भागीदार बनने के लिए कई भारतीय कम्पनियां आगे आईं​ हैं​।​ ​​​

टैंक निर्माण के क्षेत्र में शामिल प्रमुख रक्षा कंपनियां आरएफपी के माध्यम से भाग लेकर अपनी-अपनी डिजाइन पेश करेंगी। सबसे अच्छी डिजाइन का चयन करके प्रोटोटाइप ‘फ्यूचर टैंक’ का उत्पादन करने के लिए एक विकासशील एजेंसी को नियुक्त किया जाएगा। हालांकि साउथ कोरिया स्थित हुंडई रोटेम कंपनी पहले ही 2000 से ज्यादा टैंकों का ऑर्डर मिलने पर ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत पांच बिलियन डॉलर की लागत से ‘फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल’ का उत्पादन करने के लिए तैयार है।

ये एक बख्तरबंद प्लेटफॉर्म है जिसका उपयोग मुख्य रूप से मुख्य युद्धक टैंक के लिए किया जाएगा। इंडियन आर्मी अपनी आधुनिकीकरण योजनाओं के अंतर्गत 2,414 सोवियत मूल के टी-72 टैंकों के अपने पुराने बेड़े को बदलने की इच्छुक है। यदि सब कुछ निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार होता है, तो इस एफआरसीवी के 2025-27 के बीच सेना की सेवा में आने की उम्मीद है।

इंडियन आर्मी ने 2017 में भी ‘फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल’ के लिए RFI जारी किया था। तब कंपनी नवम्बर, 2017 में ही डाइरेक्टर जनरल मेकेनाइज्ड फ़ोर्स (डीजीएमएफ) को RFI (सूचना के लिए अनुरोध) का जवाब दे चुकी है। डीजीएमएफ टैंक और आईसीवी डिजाइन करने के लिए सामान्य सेवा गुणात्मक आवश्यकता (जीएसक्यूआर) के प्रचार के लिए नोडल एजेंसी है।RFI में कहा गया था कि मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की पेशकश करनी चाहिए।

बख्तरबंद प्लेटफॉर्म में 40 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री होनी चाहिए। दक्षिण कोरियाई कंपनी ने पिछले साल अगस्त में नई दिल्ली में पहली बैठक में भाग भी लिया था। ओईएम को भारत में इकाइयों का उत्पादन करने के लिए एक रणनीतिक भागीदार के साथ गठजोड़ करना होगा।

RFI के मुताबिक ‘फ्यूचर टैंक’ का मध्यम वजन 45-50 टन होना चाहिए जो विकसित, रेगिस्तानी इलाकों और उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में संघर्ष के व्यापक स्पेक्ट्रम सहित विभिन्न इलाकों में काम कर सके। युद्धक्षेत्र के बदलते परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए यह प्रौद्योगिकी संचालित हो।

एफआरसीवी प्लेटफॉर्म न केवल भविष्य के युद्धों के लिए उपयुक्त होना चाहिए बल्कि अन्य विशेष लड़ाकू वाहनों पर इस्तेमाल करने की क्षमता होनी चाहिए। यानी इंडियन आर्मी एक ऐसे एफआरसीवी प्लेटफॉर्म के लिए उत्सुक है जो रूसी टी-14 आर्मटा, यूक्रेनियन ओप्लॉट, फ्रेंच लेक्लर टैंक और दक्षिण कोरियाई के-2 ब्लैक पैंथर मुख्य युद्धक टैंकों के समान हो। चूंकि जर्मन लोपार्ड और अमेरिकी एम-1 अब्राम भारी वजन वाले टैंक हैं, इसलिए वे RFI में निर्धारित निर्देशों के अनुरूप नहीं हैं।

​​दक्षिण कोरियाई कंपनी के अलावा कई अन्य वैश्विक कंपनियों ने भी 2017 में RFI का जवाब दिया था जिनमें यूके की बीएई सिस्टम्स, यूएस की जनरल डायनेमिक्स, जर्मनी की क्रॉस-माफेई वेगमैन, फ्रांस की नेक्सटर, पोलैंड की पोल्स्की होल्डिंग ओब्रोनी, रूस की रोसोबोरोनएक्सपोर्ट और यूक्रेन की यूक्रेन एक्सपोर्ट कम्पनियां शामिल हैं।

इसके अलावा रणनीतिक भागीदार बनने के लिए भारतीय कंपनियों में महिंद्रा ग्रुप, भारत फोर्ज, पुंज लॉयड, टाटा पावर एसईडी, टाटा मोटर्स, रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड, टीटागढ़ वैगन्स और ट्रैक्टर्स इंडिया विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम में एफआरसीवी का निर्माण करने की इच्छुक हैं।

एफआरसीवी के कई प्रकार होंगे जिनमें ट्रैक किए गए मुख्य युद्धक टैंक का प्राथमिक संस्करण, ट्रैक लाइट टैंक, पहिएदार संस्करण, ब्रिज लेयर टैंक, ट्रॉल टैंक, माइनस टैंक्स, बख्तरबंद रिकवरी वाहन, सेल्फ प्रोपेल्ड आर्टिलरी गन/होवित्जर, वायु रक्षा बंदूक, मिसाइल प्रणाली, तोपखाने, ऑब्जरवेशन पोस्ट वाहन, इंजीनियर टोही वाहन और एम्बुलेंस भूमिका वाले बख्तरबंद शामिल हैं। इन्हें प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, इंजीनियरिंग सहायता पैकेज, अन्य रखरखाव और प्रशिक्षण आवश्यकताओं के साथ ‘स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप’ के अंतर्गत खरीदने की योजना है।

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