Navratri 2021: अटूट आस्था का प्रतीक है दुर्गा महामाई का मंदिर, जरूर करें दर्शन

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के चौगामा क्षेत्र के कान्हड़ गांव में स्थित लगभग 500 साल पुराना दुर्गा मंदिर श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का प्रतीक है। चौगामा क्षेत्र के दाहा और कान्हड़ गांव के मध्य बड़ौत-बुढ़ाना मार्ग पर मौजूद दुर्गा मन्दिर की स्थापना कान्हड़ गांव निवासी बहादुर गिरी ने उस वक्त की थी जब देश में मुस्लिम हुकूमत थी। उन्होंने मीर अली नवाब पीछोकरा निवासी से मन्दिर स्थापित कराने के लिए जमीन को दान में लिया था। दान में मिली लगभग 12 बीघा की जमीं पर मंदिर बनवाने के लिए बहादुर गिरी ने क्षेत्र में घुम-घुमकर चंदा इकट्ठा किया और मन्दिर का निर्माण कराकर दुर्गा माता की मूर्ति स्थापित करायी थी।

Durga Mahamayi's temple

कहते है कि किसी जमाने में एक व्यक्ति ने अपनी पुत्री का विवाह किया लेकिन विदाई के दौरान पुत्री ने अपने पिता से डोली में बैठते हुए कहा था कि तुमने जहां पर मेरी शादी की है। वहां पर तो देवी का मेला भी नहीं लगता है, तब पिता ने उसकी गोद में दुर्गा माता की मूर्ति रखी दी थी। इसके बाद दोघट थाना क्षेत्र के बोपुरा गांव में एक वर्ष तक खूब मेला लगा। हालाँकि इस क्षेत्र के अधिकतर मुस्लिम परिवार रहते थे।

जरूर पूर्ण होती है मनोकामना 

बताया जाता है कि एक बार बहादुर गिरी ने घोड़े पर सवार होकर दुर्गा माता की मूर्ति को उठा लिया था जिसे उन्होंने टीकरी कस्बे के निकट प्याऊ पर पहुंचा दिया था। उन्होंने यही पर मूर्ति स्थापित कराने का निर्णय लिया। इसके बाद यही पर मां दुर्गा की मूर्ति की पूजा अर्चना हुई हुआ रहे स्थापित किया गया। इसके बाद से हर साल वहीं पर मेला लगना शुरू हो गया। बागपत के बड़ौत में आयोजित होने वाले इस मेले में हरियाणा ,पंजाब, दिल्ली आदि स्थानों से लोग माता दुर्गा के दर्शन करने आते है। मन्दिर में हनुमान, माँ दुर्गा ,काली माता, शनिदेव आदि की मूर्तिया स्थापित है। इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना जरूर पूर्ण होती है।

दान के सहारे होता है मंदिर का रख रखाव

प्राचीन मन्दिर में आने वाला दान सभी मन्दिर निर्माण कार्य में खर्च कर दिया जाता है। शासन- प्रशासन से कोई मदद मंदिर के लिए नहीं मिलती। मंदिर के पुजारी कंवरपाल गिरी ने बताया कि दानदाताओं के सहारे ही मंदिर का जीणोद्धार होता है।

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