केंद्र सरकार के विवादास्पद कृषि कानूनों के दूरगामी परिणामों को लेकर देशव्यापी बहस जारी है। इस कानूनों के विरोध में ४० दिनों से लाखों किसान दिल्ली को घेरे हुए हैं। किसान कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग पर अड़े हुए है। आंदोलन में अब तक 60 किसानों की मौत भी हो चुकी हैं। बारिस, कोहरा और भीषण ठंड में भी किसान दते हुए हैं।
वहीं केंद्र की मोदी सरकार इस कृषि कानूनों को किसानों के लिए लाभकारी साबित करने के लिए देशव्यापी अभियान चला रही है। सरकार समर्थक तबका और मीडिया किसान आंदोलन पर तरह-तरह के लांछन लगा रही है। कई जिम्मेदार लोगों ने इसे खालिस्तानी और माओवादियों का आंदोलन तक करार दिया। इससे सरकार के खिलाफ किसानों का गुस्सा और तीब्र हो उठा है। किसानों ने अंबानी और अडानी कंपनी के उत्पादों के बहिष्कार की घोषणा की है। गुस्साए किसानों ने पंजाब और हरियाणा में रिलायंस मोबाइल टाबरों की बिजली काट दी है।
इन बुनियादी सवालों से इतर केंद्र सरकार प्रचार तंत्र के जरिये नए कृषि कानूनों से किसानों को होने वाले कथित फायदों के कसीदे पढ़ रही है। इसके लिए सरकार ने बाकायदा सौ पेज की एक ई-बुकलेट जारी की है, जिसमे इन कानूनों के जरिये कुछ किसानों की सफलता की कहानी लिखी हुई है। उधर भाजपा शासित मध्य प्रदेश और हरियाणा समेत कुछ अन्य राज्यों से इसके दुष्प्रभाव भी आने शुरू हो गए हैं। इसी तरह नये कृषि कानून लागू होने के बाद आलू की कीमतों में गिरावट आई है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।
गत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो कार्यक्रम मन की बात में महाराष्ट्र के एक किसान जितेंद्र द्वारा नये कृषि कानूनों का उपयोग कर दो व्यापारियों से अपना बकाया वसूलने की कहानी का जिक्र किया था। हालांकि, बाद में किसान जितेंद्र कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का समर्थन करते दिखे। जितेंद्र ने किसानों की उपज के लिये एमएसपी की गारंटी सुनिश्चित करने की भी मांग की है।
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि बाजार में मांग-आपूर्ति के असंतुलन से कृषि उपजों की कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव से किसानों को संरक्षण दिया जाना बेहद आवश्यक है। न्यूनतम समर्थन मूल्य से अब तक सरकारें किसानों को संरक्षण देती रही हैं। नये सुधार कानूनों में तमाम विसंगतियां हैं। राज्य सरकारों को प्राथमिकता के आधार पर किसानों को उपज के भंडारण की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए।