उत्तराखंड में कोई भाजपा का मुख्यमंत्री पूरा नहीं कर सका अपना 5 साल का कार्यकाल

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कुछ दिनों पहले तक लग रहा था कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपना कार्यकाल पूरा कर रिकॉर्ड बनाएंगे। इसके लिए वे जोर-शोर से तैयारी भी कर रहे थे ।त्रिवेंद्र सिंह रावत बहुत आत्मविश्वास के साथ कहते फिर रहे थे कि ‘मैं इस बार 5 साल का कार्यकाल पूरा करूंगा’ । मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इसी महीने 18 मार्च को अपनी सरकार का 4 साल पूरा होने की खुशी में एक बड़े जश्न के आयोजन की तैयारी में भी लगे हुए थे । इसी इरादे से वह धड़ाधड़ विकास योजनाओं को लागू करने में लगे हुए थे ।

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बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले आपको बता दें कि उत्तराखंड में अभी तक भाजपा की सरकारों में कोई भी मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है । वहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत शुरुआती समय में धीमी गति से चलकर अपने आपको स्थापित करने में लगे रहे । चार साल तक आते-आते वह एक सधे हुए नेता के तौर पर वो उभर कर सामने आए । लेकिन राजनीति के मैदान में भी अनिश्चितता का दौर खूब देखा जा रहा है, पता नहीं चलता कि अगले दिन कौन सा विरोधी खेमा कहां अपना मोहरा फिट करने वाला है ।

सोमवार को बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह को अचानक दिल्ली तलब कर प्रदेश की सियासी धड़कनें बढ़ा दी । उत्तराखंड बीजेपी के कई विधायकों की सीएम रावत से नाराजगी से उनकी कुर्सी पर संकट मंडराता हुआ दिखाई दे रहा है।सियासी उथल-पुथल के बीच दिल्ली से लेकर राज्य तक बैठकें चल रही हैं।

त्रिवेंद्र सिंह रावत ही उत्तराखंड के सीएम रहेंगे या कोई और बनेगा इसे लेकर बहस जारी है। एक बार फिर राज्य में बीजेपी के एक सीएम का कार्यकाल नहीं पूरा कर पाने का रूपरेखा लिखी जा रही है । ऐसे में क्या बीजेपी को सीएम रावत इस सियासी संकट से उबार पाएंगे या नहीं? आपको बता दें कि उत्तराखंड की राजनीति कभी स्थिर नहीं रही । वर्ष 2000 में उत्तराखंड का निर्माण हुआ था। उस समय बीजेपी की सरकार बनी थी, जिसके बाद अगले दो सालों में बीजेपी के ही दो मुख्यमंत्री बने थे ।

इस बार प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की तीसरी बार सत्ता में है । लेकिन कोई भी सीएम अपने पांच सालों का कार्यकाल अभी तक पूरा नहीं कर पाया है। ऐसे ही कांग्रेस पार्टी का हाल रहा । नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कोई भी कांग्रेसी मुख्यमंत्री अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया ।

विरोधी खेमे की मोर्चाबंदी पहले सीएम नित्यानंद स्वामी से शुरू होकर त्रिवेंद्र तक जारी रही

उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी के नित्यानंद स्वामी बने थे । लेकिन एक साल भी वो कुर्सी पर नहीं रह सके। नित्यानंद के खिलाफ बीजेपी नेताओं ने मोर्चा खोल दिया था । जिसके बाद सीएम नित्यानंद को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा । नित्यानंद के इस्तीफा देने के बाद बीजेपी ने अपने नेता भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया ।

कोश्यारी सीएम की कुर्सी पर एक मार्च 2002 तक ही रह सके। क्योंकि उत्तराखंड में साल 2002 में विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें भारतीय जनता पार्टी कोश्यारी के अगुवाई में चुनाव लड़ी थी। यह चुनाव बीजेपी के लिए महंगा पड़ा और पार्टी राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी और कांग्रेस के हाथ सत्ता की कमान लगी । इस तरह से भगत सिंह कोश्यारी महज 4 महीने ही मुख्यमंत्री के पद पर रह सके थे। वर्ष 2007 में फिर विधानसभा चुनाव हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटी ।

लेकिन 2007 से 12 तक भाजपा में तीन मुख्यमंत्री भी बदलें । पहले भुवन चन्द्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया । खंडूरी मुख्यमंत्री के पद पर लगभग पौने दो साल ही रह सके । इसके बाद भाजपा आलाकमान ने खंडूरी की जगह रमेश पोखरियाल निशंक को सत्ता की कमान सौंप दी । लगभग सवा दो साल बाद ही विरोध के चलते निशंक को भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा । साल 2011 में एक बार फिर भुवन चन्द्र खंडूूूरी को दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया ।

अगले वर्ष 2012 में एक बार फिर राज्य में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस की सत्ता आई । इस तरह कांग्रेस के हाथों बीजेपी को मिली हार के बाद खंडूरी को 13 मार्च 2012 को कुर्सी छोड़नी पड़ गई । साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला तो सत्ता की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को मिली । त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली, जिसके बाद से वह अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं ।

त्रिवेंद्र भाजपा में सबसे लंबे समय तक सीएम की कुर्सी पर रहने वाले नेताओं में शामिल हैं, लेकिन चार साल के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ पार्टी और विधान मंडल दल में बगावत से संकट गहरा गया है। अभी शाम 4 बजे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्यपाल बेबी रानी मौर्य से मुलाकात कर इस्तीफा सौंप सकते हैं । -शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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