लाहौर॥ पाक पीएम शुरू में कोविड-19 के संक्रमण को साधारण फ्लू बता रहे थे। इस संकट से लड़ने की उनकी रणनीति शुरू से लेकर अब भ्रम से भरी रही। लॉकडाउन को लेकर तो सेना और सरकार में मतभेद भी खुलकर सामने आए।
आर्मी ने लॉकाडाउन लगाया तो कट्टर इस्लामिक संगठनों ने मानने से मना कर दिया और बाद में सरकार को इनकी मांगों के सामने झुकना पड़ा। आज हालात ये हैं कि हर 100 टेस्ट में से 23 लोग संक्रमित निकल रहे हैं। पाक पीएम की रणनीति थी कि कोविड-19 की लड़ाई में अर्थव्यवस्था की खराब सेहत कहीं आईसीयू में न पहुंच जाए लेकिन सरकार दोनों को संभालने में असफल रही।
पाक ने ईद के त्योहार से पहले 9 मई को ढीले-ढाले लॉकडाउन को भी हटा दिया। आर्थिक महामारी को देखते हुए पाकिस्तान की सरकार शुरुआत से ही लॉकडाउन लागू करने के पक्ष में नहीं थी। पाकिस्तान के पीएम ने कहा था कि संक्रमण के बढ़ते मामलों और उससे हो रहीं मौतों के बावजूद देश को कोरोना के साथ रहना सीखना होगा ताकि लाखों लोगों की आजीविका पर संकट ना आए।
pak में सख्ती से लॉकडाउन ना लागू करने को लेकर पाक पीएम आलोचना का भी शिकार हुए थे। हालांकि, इमरान खान ने सफाई दी थी कि वह कोविड-19 से बचाने के लिए लोगों को भुखमरी से मरने नहीं दे सकते हैं। लॉकडाउन हटने के बाद से पाकिस्तान में कोविड-19 संकट का कहर तेजी से बढ़ता जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी डेटा से पता चलता है कि लॉकडाउन हटाने से पहले के तीन हफ्तों में 20,000 मामलों की पहचान की गई थी लेकिन लॉकडाउन खुलने के 3 सप्ताहों के अंदर इससे डबल केस सामने आए हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि संक्रमण के मामलों की बढ़ती संख्या के पीछे एक वजह टेस्टिंग की तेज होती रफ्तार भी है। हालांकि, लॉकडाउन के दौरान प्रतिदिन किए जाने वाले परीक्षणों में से पॉजिटिव मामलों का औसत 11.5 फीसदी था जबकि लॉकडाउन हटने के बाद के तीन हफ्तों में ये औसत 15।4 फीसदी हो चुका है। डेटा के अनुसार, इस सप्ताह ये अनुपात 23 प्रतिशत हो चुका है।