नई दिल्ली। कोरोना वैश्विक महामारी ने सबकुछ थस-नहस करके रख दिया है। बात करते हैं मक्का की, सिर पर हाथ रखे सज्जाद मलिक का चेहरा उतरा हुआ है। मक्का की ऐतिहासिक ‘मस्जिद अल-हरम’ के पास टैक्सी बुकिंग का उनका ऑफ़िस इन दिनों वीरान पड़ा है।
सज्जाद का कहना है, “यहाँ काम नहीं है, तनख्वाह नहीं है, कुछ भी नहीं है।” वो कहते हैं, “आम तौर पर हज के पहले इन दो-तीन महीनों में मैं और मेरे ड्राइवर इतना पैसा कमा लेते थे कि पूरे साल का गुज़ारा चल जाता था. लेकिन इस बार कुछ नहीं है।”
कभी इस शहर की सड़कों पर सफ़ेद लिबास पहने हाजियों का समंदर उफान मारता था। कड़ी धूप से बचने के लिए उनके हाथों में छतरियाँ होती थीं।
लेकिन वर्तमान में हाजियों से गुलज़ार रहने वाली मक्का की सड़कें इस बार सूनी हैं। सड़क को कबूतरों की फौज ने डेरा बना रखा है। आज इन ड्राइवरों की गाड़ियाँ ख़ाली हैं और मक्का का सन्नाटा किसी भुतहे शहर की तरह लग रहा है। सज्जाद के ड्राइवर उन्हें इन कबूतरों के वीडियो रिकॉर्ड शूट करके भेज रहे हैं।
सज्जाद कहते हैं, “मेरे ड्राइवरों को खाने-पीने की चीज़ों की भी तंगी हो रही है। अब वे उन कमरे में चार या पाँच लोगों के साथ सो रहे हैं, जिनमें दो लोगों के रहने की जगह ही है।”
सरकारी मदद मिलने की बात पर सज्जाद का कहना है कि “नहीं, नहीं. कोई मदद नहीं मिल रही है। मैंने कुछ पैसे बचा रखे थे, जिससे काम चल रहा है। लेकिन मेरे पास कई स्टाफ़ हैं। 50 से भी ज़्यादा लोग मेरे साथ काम करते हैं और उन्हें परेशानी हो रही है।”
सज्जाद अपनी बात कहना जारी रखते हैं, “मेरे एक दोस्त ने कल मुझे फ़ोन किया था। उसने कहा कि ‘मेहरबानी करके मुझे कुछ काम दे दो। मुझे काम की तलाश है। मुझे परवाह नहीं तुम कितना पैसा देना चाहते हो।’ मेरा यक़ीन मानिए, यहाँ लोग रो रहे हैं।”