Pitru Paksha 2021: अगर पूर्वजों के देहांत की तिथि ज्ञात नहीं तो इस दिन करें श्राद्ध

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इस समय पितृ पक्ष चल रहा है। पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। शास्त्रों में बताया गया कि जिस व्यक्ति मौत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की जिस तिथि को होती है पितृपक्ष की उसी तिथि पर उसका श्राद्ध किया जाता है। वहीं अगर किसी व्यक्ति को आपने पूर्वजों डेथ की तारीख पता नहीं है तो शास्त्रों के मुताबिक इन पूर्वजों का श्राद्ध कर्म अश्विन अमावस्या को किया जा सकता है। इसी तरह से दुर्घटना का शिकार हुए परिजनों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जा सकता है।

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कुछ महत्वपूर्ण तिथियां

पूर्णिमा: मृत्यु प्राप्त जातकों का श्राद्ध सिर्फ भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा या फिर आश्विन कृष्ण अमावस्या             को किया जाता है। इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहते हैं।
प्रतिपदा: अगर किसी को पुत्र नहीं है तो प्रतिपदा में उनके धेवते अपने नाना-नानी का श्राद्ध कर सकते               हैं।
नवमी: सौभाग्यवती स्त्री की मौत के बाद उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए। इसके साथ ही              माता की मृत्यु के बाद उनका श्राद्ध भी नवमी को कर सकते हैं। जिन महिलाओं के देहांत की                तिथि मालूम न हो, उनके श्राद्ध के लिए भी यह तिथि बेहतर होती है।
एकादशी: संन्सास लेने वाले लोगों का श्राद्ध एकादशी को करने की परंपरा है।
द्वादशी: यह तिथि भी संन्यासियों के श्राद्ध की ति‍थिमानी जाती है।
त्रयोदशी: इस तिथि में बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।
चतुर्दशी: अकाल मृत्यु, जल में डूबने से मौत, किसी के द्वारा कत्ल किया गया हो या फिर                              आत्महत्या   हो, ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।
अमावस्या: सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। इसे                                   पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता है। वहीं अगर                        निधन पूर्णिमा तिथि को हुआ हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष                               अमावस्या को किया जा सकता है। इसके अलावा बच गई तिथियों को उनका श्राद्ध करें                     जिनका उक्त तिथि (कृष्ण या शुक्ल) को निधन हुआ है। जैसे द्वि‍तीया, तृतीया                                    (महाभरणी), चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी और दशमी।

पूर्वजों के श्राद्ध के लिए सबसे श्रेष्ठ समय दोपहर का कुतुप काल और रोहिणी काल होता है। कुतप काल में किए गए दान का अक्षय फल मिलता है। प्रात: काल और रात में श्राद्ध करने से पितृ नाराज हो जाते हैं।

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