उमा भारती फिर करेंगी बगावत !

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उन्नीस सौ नव्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेताओं का भारतीय जनता पार्टी में कोई पुरसाहाल नहीं है। लाल कृष्ण आडवाणी, उमा भारती, विनय कटियार आदि आज अपनी ही पार्टी में हासिए पर हैं। भाजपा में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के पहले उमा भारती केंद्रीय भूमिका में होती थी मध्यप्रदेश की राजनीति में उनके बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता था।

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विगत कुछ वर्षों से उमा भारती वनवास भुगत रही हैं। मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ है शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया गया है और कैबिनेट का विस्तार भी हुआ है। ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को अहमियत ना देना कई सवाल खड़े करता है। कहने को तो उमा भारती पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें कैबिनेट विस्तार में बुलाया भी था, लेकिन सियासी गलियारों में इसे औपचारिकता ही माना गया। भाजपा के अंदर और बाहरस्वाल उठ रहे हैं कि क्या वजह है कि भाजपा ने अपनी इस तेजतर्रार फायरब्रांड नेत्री को हासिये पर धकेल दिया है?

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गौरतलब है कि उमा भारती राम मंदिर आंदोलन की अग्रणी पंक्ति के नेताओं में शुमार की जाती थी। पार्टी उन्हें अपना थीम लीडर मानती थी। कोई भी बड़ा कार्यक्रम उनके जोशीले भाषणों और मौजुदगी के बिना अधूरा माना जाता था। लेकिन यह सब गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। आज उमा भारती समेत भाजपा के सभी तेज तर्रार नेता हंसिये पर धकेल दिए गए हैं। पार्टी नेताओं में यह चर्चा आम है कि भाजपा अब सिर्फ मोदी और अमित शाह तक ही सीमित होकर रह गई है।

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उमा बरती के गृह प्रदेश में भाजपा की राजनीति अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सिमटती नजर आ रही है। हालांकि, सिंधिया परिवार से उमा भारती का पुराना नाता रहा है। उमा भारती को भाजपा की राजनीति में लाने का श्रेय सिंधिया परिवार को ही दिया जाता है। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में ज्योतिरादित्य सिंधिया उमा भारती को तवज्जो नहीं दे रहे हैं।

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उल्लेखनीय है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उमा भारती को कहीं से भी लोकसभा प्रत्याशी नहीं बनाया। जबकि वह 2014 में झांसी की सांसद रह चुकी थी। उन्हें आश्वासन दिया गया कि जल्द ही उन्हें राज्यसभा में भेजा जाएगा। लेकिन राज्यसभा में भी नहीं भेजा गया। इस दौरान उमा भारती ने अस्वस्थ होने का बहाना किया था। हालांकि, मोदी की पिछली सरकार में उमा भारती को गंगा सफाई का मंत्रालय दिया गया था। लेकिन कुछ दिनों बाद ही प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे यह मंत्रालय भी छीन लियाथा। तब कहा गया कि उमा भारती गंगा सफाई करने में नाकाम रही; जिसके चलते उनसे यह मंत्रालय ले लिया गया। उस समय उमा भारती और उनके समर्थक अपमान का घुट पीकर रह गए थे।

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इस तरह मोदी और शाह द्वारा उमा भारती को किनारे किये जाने से उनके समर्थकों में रोष है। इसलिये उमा भारती ने अगला विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। विगत दिनों उन्होंने खुद ही 2024 का विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। कहा जा रहा है कि वह 2024 में मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार होंगी। उमा भारती और उनके समर्थकों के मौजूदा तेवरों से शिवराज के साथ ही मोदी और शाह भी सकते में हैं ।

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