Up kiran,Digital Desk : जब भी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आते हैं, तो दुनिया की निगाहें इस 'पुरानी दोस्ती' पर टिक जाती हैं। लेकिन इस बार मामला सिर्फ गर्मजोशी से गले मिलने या पुरानी बातें करने का नहीं है। इस बार यह मुलाकात एक सोची-समझी रणनीति है, जिसका एजेंडा दोस्ती से कहीं ज़्यादा बिज़नेस, सुरक्षा और भविष्य की अनिश्चितताओं से जुड़ा है।
एक बड़ी रिपोर्ट (GTRI की) के मुताबिक, पुतिन का यह दौरा पुरानी कूटनीति का हिस्सा नहीं, बल्कि जोखिम प्रबंधन (Risk Management), सप्लाई चेन की स्थिरता और आर्थिक सुरक्षा पर टिकी एक बहुत ही गंभीर बातचीत है।
तो इसका मतलब क्या है?
इसे आसान भाषा में समझिए। जब पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची हो, देश एक-दूसरे के खिलाफ खेमों में बंट रहे हों, तो हर कोई एक ऐसा दोस्त ढूंढता है जिस पर वह पूरी तरह निर्भर होने के बजाय भरोसा कर सके। भारत और रूस भी ठीक यही कर रहे हैं। यह किसी का 'पक्ष' चुनने का मामला नहीं, बल्कि बिखरती हुई दुनिया में अपनी-अपनी ज़रूरतें पूरी करने की एक कोशिश है।
इस मुलाकात से दो बड़ी संभावनाएं निकलकर आ सकती हैं:
यह सबसे व्यावहारिक रास्ता है। इसमें दोनों देश कोई बड़ा जोखिम नहीं लेंगे, बल्कि जो चल रहा है, उसे और मज़बूत करेंगे।
- रक्षा सौदे: भारत अपने फाइटर जेट, टैंक और पनडुब्बियों जैसे बड़े हथियारों की डिलीवरी, रखरखाव और टेक्नोलॉजी अपग्रेड पर पक्की बात करेगा।
- ऊर्जा का सौदा: बदले में रूस चाहेगा कि भारत उससे लंबे समय तक तेल और गैस खरीदने का पक्का वादा करे। इसमें LNG प्रोजेक्ट में भारत की हिस्सेदारी और कई सालों तक कच्चा तेल खरीदने का চুক্তি शामिल हो सकता है।
- डॉलर को किनारे करना: दोनों देश डॉलर की जगह किसी और मुद्रा में व्यापार करने पर कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं, जैसे UAE की मुद्रा दिरहम या रूस के पेमेंट सिस्टम को भारत के RuPay से जोड़ना।
यह दूसरा रास्ता ज़्यादा महत्वाकांक्षी है, जो भारत-रूस के रिश्तों को एक नई शक्ल दे सकता है।
- मिलकर हथियार बनाना: सिर्फ हथियार खरीदने के बजाय, भारत और रूस मिलकर यहीं पर रक्षा उपकरण बना सकते हैं।
- भारत का रूस में बड़ा निवेश: भारत रूस के आर्कटिक LNG 2 जैसे बड़े ऊर्जा प्रोजेक्ट में सीधे तौर पर पैसा लगा सकता है।
- नए रास्ते खोलना: चेन्नई से रूस के व्लादिवोस्तोक तक सीधे समुद्री रास्ते और INSTC कॉरिडोर पर तेजी से काम शुरू हो सकता है।
- पैसे का समाधान: रूस में भारत के जो अरबों रुपये फंसे हुए हैं, उन्हें निकालने के लिए एक नया पेमेंट सिस्टम बनाया जा सकता है।
कुछ कड़वी सच्चाईयाँ भी हैं…
- व्यापार का भारी असंतुलन: भारत रूस को सिर्फ 5 अरब डॉलर का सामान बेचता जबकि वहां से 64 अरब डॉलर का खरीदता है। इसका बड़ा हिस्सा तेल और हथियार हैं।
- तेल पर भारी निर्भरता: 2021 में हम रूस से सिर्फ 2.3 अरब डॉलर का कच्चा तेल खरीदते थे। 2024 में यह आंकड़ा उछलकर 52.7 अरब डॉलर पहुँच गया! आज भारत का लगभग एक-तिहाई से ही ले रहा है।
कुल मिलाकर, पुतिन का यह दौरा पुरानी दोस्ती की दुहाई देने से कहीं ज़्यादा है। यह बदलते हुए विश्व में अपनी-अपनी जगह सुरक्षित करने की एक सोची-समझी कूटनीतिक चाल है, जहाँ जज़्बातों से ज़्यादा ज़रूरतें हावी हैं।
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