वाशिंगटन। आज कल देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर की हवा प्रदूषित (Air Pollution) हो गयी है। दुनिया भर में फैला वायु प्रदूषण लोगों को कई तरह की गंभीर बीमारियों की चपेट में ले रहा है। हाल ही में किये गए एक अध्ययन में पाया गया है कि लगातार वायु प्रदूषण में रहने से तंत्रिका तंत्र संबंधी डिमेंशिया रोग का खतरा बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा किये गए इस अध्ययन में वायु प्रदूषण के अतिरिक्त प्रभावों की भी पहचान की गई है और इन रोगों में मनोभ्रंश या विक्षिप्तता (डिमेंशिया) की संभावित भूमिका को समझने पर बल दिया गया है।
मनोभ्रंश के जोखिम कारकों और वायु प्रदूषण पर वाशिंगटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पुगेट साउंड क्षेत्र में लंबे समय से चल रही दो परियोजनाओं के डेटा का उपयोग किया। इस अध्ययन से पता चलता है कि हवा की गुणवत्ता में सुधार मनोभ्रंश या विक्षिप्तता (डिमेंशिया) को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति साबित हो सकता है।
शोधकर्ताओं ने फाइन पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (पीएम2.5) – 2.5 माइक्रोमीटर से कम या उसके बराबर व्यास वाले पार्टिकुलेट और डिमेंशिया के बीच संबंध खोजने के लिए मौजूदा डेटा पर रिसर्च किया। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि अगर वायु प्रदूषण (Air Pollution) के महीन कणों में औसत स्तर पर वृद्धि होती है और लोग प्रदूषित हवा के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं तो 16 फीसद इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि वे डिमेंशिया से ग्रसित हो जाएं। मनोभ्रंश जोखिम में वृद्धि साथ ही शोधकर्ताओं ने पाया कि उसी छोटे वायु प्रदूषण में वृद्धि ने अल्जाइमर के खतरे को 11 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है।
मनोभ्रंश या विक्षिप्तता (डिमेंशिया) से ग्रसित व्यक्ति की याददाशत भी कमज़ोर हो जाती है। वह अपने रोजमर्रा के कार्य ठीक से नहीं कर पाते हैं। कई बार तो वह यह भी भूल जाते हैं कि वे किस शहर में हैं या फिर कौन सा साल या महीना चल रहा है। (Air Pollution)
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