वैज्ञानिकों ने किया कमाल, मृत बच्ची को किया जिन्दा, संतान को देख आंसू नहीं रोक पाई मां

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अजब-गजब॥ प्यार का सबसे निर्मल और निस्वार्थ रूप मां-बाप का प्रेम होता है। मां-बाप अपनी जान देकर भी अपनी संतान का जीवन बचा लेते हैं लेकिन आपने ऐसे बहुत कम बच्चों के बारे में सुना होगा जो अपना जीवन अपने मां-बाप की सेवा में समर्पित कर देते हैं। जब कई बार जब मां-बाप अपनी किसी संतान को अचानक खो देते हैं तो ये पल उनके लिए बहुत दुखदाई होता है। अब रिसर्चकर्ताओं ने इस दुख को कम करने का एक तरीका भी ढूंढ लिया है। अब वर्चुअल रियल्टी की सहायता से उन लोगों को फिर जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है जिनकी वक्त से पहले मृत्यु हो गई।

ऐसी ही एक कोशिश साउथ कोरिया में की गई है। जहां एक मां की मुलाकात उसकी 7 वर्षीय बेटी से कराई गई। इस बच्ची की मृत्यु वर्ष 2016 में एक बीमारी की वजह से हो गई थी लेकिन रिसर्चकर्ताओं ने वर्चुअल रियल्टी तकनीक की सहायता से इस बच्ची का एक अवतार तैयार किया। यानी हूबहू। इस बच्ची जैसा दिखने वाला एक कंप्यूटराइज्ड कैरेक्टर।

साउथ कोरिया में इस मां और उसकी बच्ची के अवतार के बीच हुई इस मुलाकात को एक डॉक्यूमेंट्री का रूप दिया गया है। इसके लिए इस महिला की आंखों पर VR हेडसेट और हाथ में एक खास तरह के ग्लोव्ज पहनाए गए। इस VR हेडेसेट की सहायता से ये महिला अपनी बच्ची के अवतार को पास से देख सकती थी और ग्लोव्ज से छूकर उसे महसूस भी कर सकती थी।

हालांकि ये पूरी डॉक्यूमेंट्री एक हरे रंग की स्क्रीन पर शूट की जा रही थी जिस पर विजुअल इफेक्ट्स की सहायता से एक पार्क का सीन तैयार किया गया था। फिल्मों, न्यूज़ चैनलों और डॉक्यूमेंट्रीज में अक्सर इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है और इसे क्रोमा कहा जाता है। वर्चुअल रियल्टी की सहायता से जब एक मां ने अपनी बेटी को बिल्कुल अपने पास देखा। उसे स्पर्श किया और दोनो के बीच बातें हुईं तो आसपास बैठे सभी लोगों की आंखों में आंसू आ गए।

ये पूरी डॉक्यूमेंट्री कोरियन लैंग्वेज में शूट की गई है। इसलिए शायद आप मां और बेटी के बीच के इस संवाद को समझ नहीं पाएंगे लेकिन जैसा कि हमने पहले कहा कि प्रेम को शब्दों की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी भाषा पूरे विश्व में एक जैसी है। और इसे दुनिया के किसी भी कोने में बैठा कोई भी व्यक्ति सिर्फ भावनाओं के ज़रिए ही समझ सकता है। जिस दौर में तकनीक पर लोगों के रिश्ते और प्रेम संबंध तोड़ने का आरोप लगता है। उस दौर में तकनीक ही बिछड़े हुए लोगों को मिला रही है। ये वर्चुअल पुल कैसे दूर हो चुके लोगों को करीब ला रहा है।

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एक 7 वर्षीय बच्ची को खो देने वाली मां का गम क्या होता है, उसे कोरिया की Jang Ji-sung से बेहतर कौन समझ सकता है लेकिन जब वर्चुअल रियल्टी की सहायता से सपनों के विश्व में इस मां ने अपनी बेटी से मुलाकात की तो लगा साइश अब जीवन और मृत्यु के अंतर को भी मिटाने लगा है। जो अपनों को खो चुके हैं। उनके लिए ये तकनीक एक वरदान है तो कुछ लोगों ने बताया कि किस्मत और भावनाओं की चाबी किसी कम्प्यूटर के हाथ में कैसे दी जा सकती है

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