अजब-गजब ।। माता-पिता के लिए एक अच्छी औलाद का उदाहरण श्रवणकुमार को बताया जाता है और हर कोई यही चाहता है कि उनके बच्चों की सोच व कर्म श्रवणकुमार की तरह हो। जिसके चलते बच्चो को बचपन से ही श्रवणकुमार की कहानियां सुनाई जाती है। जो अपने बूढ़ें मां-बाप को अपने कंधों पर चार’धाम की यात्रा करवाता है।
मगर, ये स्टोरी कलयुग में भी सच हो जाए तो। क्योंकि कलयुग में भी एक ऐसा मनुष्य है जो अपने मां-बाप के लिए श्रवणकुमार से कम नहीं हैं। मध्यप्रदेश राज्य के जबलपुर जिले के रहने वाले कैलाश गिरी कलियुग में किसी श्रवण कुमार से कम नहीं हैं। कैलाश गिरी ने अपना पूरा जीवन अपने मां-बाप के लिए समर्पित कर दिया।
दरअसल, ब्रह्मचारी कैलाश लगभग पिछले 20 साल पहले अपनी माता की चारधाम यात्रा करने की इच्छा को पूरा करने के निकले थे। कैलाश की मां दृष्टिहीन है। जो अपने अंतिम वक्त से पहले चार’धाम की यात्रा करना चाहती है। इसके बारे में उन्होंने अपने बेटे को बताया। बस, फिर क्या था कैलाश एक डोली के सहारे अपनी मां की इच्छा पूरी करने के लिए निकल पड़े।
कैलाश ने दो दशकों से अपनी माता को कंधों पर लिया हुआ है। इस दौरान उन्होंने करीबन 37 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा को अंजाम दिया। इतना ही नहीं, कैलाश ने जब इस यात्रा को शुरू की थी तब वह 25 वर्ष के थे और आज वह पूरे 50 साल के हो चुके है।