शिक्षक दिवस (Teacher’s Day) की महत्ता

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बालक कच्ची मिटटी के सामान होते हैं, जिन्हे शिक्षक या गुरु सूंदर रूप में ढालते हैं। शिक्षक ही हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम अंधकार में भी प्रकाशित होते रहे। इसलिए तो भारतीय संस्कृति में गुरु या शिक्षक को विशेष सम्मान दिया जाता है। अपने शिक्षकों के महान कार्यों के बराबर हम उन्हें कुछ भी नहीं लौटा सकते हालाँकि, हम उन्हें सम्मान और धन्यावाद दे सकते हैं। शिक्षक दिवस गुरु की महत्ता बताने वाला प्रमुख दिवस है।

भारत में ‘शिक्षक दिवस’ प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को मनाया जाता है, हालांकि हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन को ‘गुरु दिवस’ के रूप में मनाने की परंपरा है। हमारे ऋषियों, कवियों और लेखकों ने गुरु की महिमा का रोचक वर्णन किया है।

कबीरदास ने तो गुरु की महिमा भगवान से भी बढ़कर बताई है। वह लिखते हैं –
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।

कबीरदास की यह पंक्तियाँ जीवन में गुरु के महत्त्व को वर्णित करने के लिए काफ़ी हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृत्तांत ग्रंथों में भी मिलता है। गुरु ही हमे जीने का सच्चा सलीका सिखाता है। वास्तव में शिक्षक ही समाज का शिल्पकार होता है।

गुरु या शिक्षकों को मान-सम्मान, आदर तथा धन्यवाद सिर्फ़ धन को देकर ही नहीं किया जाता। हमे अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और विश्वास का भाव रखना चाहिए। अपने गुरु का आदर-सत्कार करना चाहिए। हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। अगर अपने क्रोध, ईर्ष्या को त्याग कर अपने अंदर संयम के बीज बोएं तो निश्चित ही हमारा व्यवहार हमें बहुत ऊँचाइयों तक ले जाएगा और तभी हमारा ‘शिक्षक दिवस’ मनाने का महत्त्व भी सार्थक होगा।

शास्त्रों में कहा गया है कि –
‘गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।’

भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में तो गुरु का दर्जा सर्वोपरि है। इसलिए भारत के सभी छात्रों के लिए, शिक्षक दिन उनके भविष्य को आकार देने में उनके निरंतर, निस्वार्थ और कीमती प्रयासों के लिए उनके द्वारा अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता को अर्पित करने का उत्सव है। इसलिए शिक्षक दिवस पर हमें गुरु द्वारा बताये गए सुमार्ग पर चलते हुए विश्व से अन्धकार को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए। यही अपने गुरु या शिक्षक के प्रति सच्ची श्रद्धा है।

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