खेत में खर्च करें 30 हजार रुपए, कमाएं एक लाख से ज्यादा

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उत्तर प्रदेश॥ दर्द के साथ कई बीमारियों को दूर करने वाला मेंथा यानी विलायती पुदीना का खेती कर किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं। इसके नर्सरी डालने का समय आ गया है।

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कृषि जानकारों की मानें तो मेंथा की खेती से किसान करीब 30 हजार प्रति एकड़ खर्च करके एक से सवा लाख रुपये कमा सकता है। बाजार में मेंथा का भाव 15 सौ से 02 हजार रुपये प्रति किलो है। इसके प्रोत्साहन के लिए सीमैप ने कई कार्यक्रम चला रखा है। सीमैप इसके बीज आदि की गुणवत्ता बताने के लिए किसान मेला का भी आयोजन करेगा।

इस मामले में सीमैप के मीडिया प्रभारी डाक्टर मनोज सेमवाल ने बताया कि जनवरी माह में मेंथा के बीज डालने का उपयुक्त समय होता है। उन्होंने बताया कि मिंट की खेती से किसानों की अच्छी आमदनी हो रही है। इसकी खेती करने वाले किसान काफी खुशहाल हैं। इसकी बिक्री के लिए बाजार भी उपलब्ध है। हर वर्ष इसका रकबा बढ़ रहा है। इसकी खेती में किसानों का रूझान बढ़ता जा रहा है।

सिम क्रांति वेराइटी की जनवरी में करें खेती

बताया कि इसकी खेती पश्चिमी उप्र के संभल, चंदौसी, रामपुर और लखनऊ के पास बाराबंकी, अम्बेडकरनगर, सुल्तानपुर आदि जिलों में हो रही है। सीमैप ने मेंथा की सिम क्रांति वेराइटी विकसित की है। इस वैराइटी के विकसित होने से जनवरी में भी बुआई संभव हो पाई है। इसके अलावा अर्ली मिंट तकनीक के आने से किसानों को काफी लाभ हुआ है। पहले एक किलोग्राम मेंथा ऑयल के उत्पादन पर किसानों को 500 रुपये की लागत आती थी, लेकिन इस तकनीक के आने से लागत में करीब 200 रुपये प्रति किलोग्राम की कमी आई है। इससे किसानों ने मेंथा की खेती का रुख किया है।

अर्ली मिंट तकनीकी से अधिक लाभ

अर्ली मिंट तकनीक से किसानों को ज्यादा फायदा मिला है, क्योंकि इससे किसानों की लागत में भारी कमी आई है। इससे किसानों का रूझान मिंट अथवा मेंथा की तरफ बढ़ा है। अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में करीब ढाई लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में मेंथा की खेती हो रही है। सीमैप किसानों को लगातार इसके प्रति जागरूक कर रहा है।

गहरी जुताई की होती है जरूरत

मैंथा की खेती के लिए गहरी जुताई करनी चाहिए। मिट्टी पलटने वाले हल से कम से कम दो बार जुताई करें। और साथ ही साथ 250 से 300 क्वंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कंपोस्ट की खाद खेत में डालें। उसके बाद दो या तीन जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करें और पाटा लगाकर भूमि को समतल कर ले।

कल्ले की रोपाई होती है बेहतर

मेंथा की रोपाई के लिए सकर्स और जड़ों, दोनों को ही प्रयोग में लाते है, लेकिन सकर्स से अधिक पैदावार प्राप्त होती है। सकर्स के लिए एक थोड़े से स्थान पर खेत को तैयार कर क्यारियां बना लेते हैं और उसमें जड़ों को घना बोकर सिंचाई करते रहते हैं। इस प्रकार उन जड़ों से निकलने वाले कल्ले (सकर्स) तैयार होंगे, जो रोपाई के लिए उपयोग किये जाते हैं।

आलू की खेती के बाद भी की जाती है रोपाई

इसके रोपाई का उचित टाइम फरवरी होता है। तराई इलाके में बरसात से पहले रोपाई कर देना ठीक होता है। उत्तरप्रदेश के मध्यक्षेत्र में अधिकांशतः किसान आलू की खेती के बाद मेंथा की रोपाई करते हैं।

 

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