भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) ने भादौं मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आधी रात को मथुरा में अवतार लिया था। उस समय संपूर्ण पृथ्वी दुष्टों की आसुरी प्रवृति एवं पतितों के भार से पीड़ित थी। श्रीकृष्ण ने साम-दाम-दंड-भेद सभी का उपयोग करते हुए पृथ्वी को पापियों से मुक्त किया। विश्व में प्रसिद्द महाभारत का युद्ध भी उन्ही के समय में कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था। रणभूमि में कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व को शाश्वत आध्यात्मिक सन्देश दिया।
धार्मिक, पौराणिक और दार्शनिक काव्यग्रंथ ‘महाभारत’ के अनुसार महाभारत के युद्ध से पहले श्री कृष्ण (Lord Shri Krishna) ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकले उस अनुपम और अदभुद उपदेश गीता को बाद में 18 अध्याय और 700 श्लोक के रूप में संकलित कर उसे ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का नाम दिया गया। ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ पवित्रतम ग्रन्थ है, जिसमे जीवन के सत्य के साथ ही समस्त आध्यात्मिक जिज्ञासाओं के उत्तर भी हैं।
भगवद्गीता ज्ञान (Lord Shri Krishna) का अथाह सागर, जीवन का प्रकाशपूंज और दर्शन है। शोक और करुणा से निवृत होने का सम्यक मार्ग है। श्री वेदव्यास जी के अनुसार ‘गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः, या स्व्यं पद्मनाभस्य मुखमद्माद्विनीःसुता।’ अर्थात गीता सुगीता करने योग्य है। इसे भली प्रकार पढ़कर अंतःकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है जो कि स्वयं पद्मनाभ भगवान श्रीविष्णु के मुखारविंद से निकली हुई है। स्वयं श्री भगवान ने भी गीता के महात्मय का बखान किया है।
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) ने मोक्ष प्राप्ति के लिए मुख्य दो मार्ग बतलाए हैं- एक सांख्ययोग और दूसरा कर्मयोग। कर्म की महत्ता पर उन्होंने विशेष बल दिया है। श्रीकृष्ण ने फल की आसक्ति छोड़ कर्म करने को कहा है। गीता निराशा के भंवर में फंसे संसार को सफलता और असफलता के प्रति समान भाव रखकर कार्य करने की प्रेरणा देती है, इसे ही कर्मयोग कहा गया है।
श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) ने अर्जुन के माध्यम से जगत को समझाया है कि निष्काम कर्म भावना में ही जगत का कल्याण है। श्रीकृष्ण ने गीता में धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य और न्याय-अन्याय को भलीभांति परिभाषित किया है। संसार के लिए क्या ग्राहय और क्या त्याज्य है उसे भलीभांति समझाया है।
Lord Shri Krishna साक्षात परब्रह्म हैं। वो नित्यों के नित्य और जगत के सूत्रधार हैं। उनके उपदेश में भारतीय चिंतन और धर्म का निचोड़ समाहित है। भगवद्गीता में समस्त संसार और मानव जाति के कल्याण का मार्ग छिपा है। यह विश्व संरचना का सार तत्व है।