लखनऊ। देश के विभिन्न राज्यों में कोयला आधारित बिजली घरों से निकलने वाले फ्लाई एश से दुर्घटनाएं होती रहती हैं। इसके अलावा फ्लाई एश मिलने से प्राकृतिक जलस्रोत भी प्रदूषित हो रहे हैं। देश के विभिन्न राज्यों के निवासियों को इन दुर्घटनाओं की वजह से कई तरह का समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
एक अहम रिपोर्ट ‘लेस्ट वी फॉरगेट- ए स्टेटस रिपोर्ट ऑफ नेगलेक्ट ऑफ कोल एश एक्सिडेट इन इंडिया ( मई 2019 – मई2021)’ जिसे असर सोशल इंपैक्ट एडवाइजर्स, सेंटर फार रीसर्च ऑन इनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) और मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है।
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में अनपरा थर्मल पावर स्टेशन से निकले फ्लाई एश का उपयोग बहुत कम होता है और इसे नियमित रूप से रिहंद जलाशय में प्रवाहित कर दिया जाता है। इससे रिहंद जलाशय का पानी प्रदूषित हो रहा है।
रिहंद में प्रवाहित फ्लाई एश का 21 प्रतिशत अनपरा थर्मल पावर स्टेशन का होता है। स्थानीय निवासियों के मुताबिक़ पिछले कुछ वर्षों में एशपौंड के प्रवाह को रोकने के लिए अनेक आदेश निर्गत हुए, पर सात-आठ वर्ष बीतने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।
अध्ययन में पता चला है कि हवा में मिली राख की वजह से क्षय रोग (टीबी) और सांस संबंधी बीमारियां समूचे केन्द्रीय भारत में फैल रही हैं। इसका प्रभाव प्राकृतिक जलस्रोतों के गंभीर प्रदूषण के रूप में भी दिख रहा है क्योंकि राख को सीधे नदी में डाल दिया जाता है।
राख से जुड़ी दुर्घटनाओं की प्रकृति और आजीविका पर प्रभाव से जोड़ते हुए मंथन अध्ययन केन्द्र की सह-लेखक सेहर रहेजा ने कहा कि संरचनात्मक रूप से अस्थिर एश पौंड और रिसाव वाले एश स्लरी (राख का घोल) के पाइपलाइनों का विस्तृत अध्ययन किया गया है जिनके कारण खेतों और उस पूरे इलाके को जहरीली राख (कोल एश) ने ढंक लिया है। इसे विभिन्न राज्यों में हुई दुर्घटनाओं में समान रूप से देखा जा सकता है।
ताजा दुर्घटना 15 जून को छत्तीसगढ़ के कोबरा में एनटीपीसी और एसीबी इंडिया पावर प्लांट में हुई , जिसमें एश डैम दरार आने से राख मकान और खेतों में फैल गई, स्थानीय लोगों की आजीविका और स्वास्थ्य पर संकट उत्पन्न हो गया है।
मंथन अध्ययन केंन्द्र के पॉलिसी रिसर्चर श्रीपाद धर्माधिकारी ने प्रारुप अधिसूचना में उपयोगिता शब्द के प्रायोग पर सवाल उठाया है। प्रारुप अधिसूचना जैसा अभी है, उसमें फ्लाई-एश के उपयोग और निपटारा में फर्क नहीं किया गया है। यह उपयोग फ्लाई एश को किसी गहरे इलाके में छोड़ देने या बेकार खदान में डाल देने जैसा है। उन्होंने कहा कि यह फ्लाई एश को वहां से हटा देने से अधिक कुछ नहीं है। उन्होंने इस तरह के कचरे का निपटारा करने में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत को रेखांकित किया है।
असर की सह-लेखक मेधा कपूर ने कहा कि सभी फ्लाई-एश दुर्घटनाओं में एक चीज समान है। वह पारदर्शिता, जबाबदेही और अनुपालन के प्रति औद्योगिक वचनबध्दता और ऐसी प्रशासनिक प्रणाली जो कानून को लागू करने, दंड देने और निगरानी करने में तत्पर हो, पर इसमें निरंतर कमी रही है।
रिपोर्ट में आगे की कार्रवाई के लिए सिफारिशें भी शामिल की गई है, जिसमें कोयला की राख से संबंधित दुर्घटनाओं में आपराधिक मामला चलाने, एश पौंडों के लिए बाध्यकारी नियमित तकनीकी आंकलन, पारदर्शिता में बढ़ोतरी, सूचनाओं की सार्वजनिक उपलब्धता और संबंधित अधिकारियों को जिम्मेवार बनाए रखने के लिए नागरिक समाज का सामुहिक प्रयास शामिल हैं।