1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया। उस समय सुभाष चन्द्र बोस और देशबन्धु चितरंजन दास दोनों जेल में थे। दोनों ही इस निर्णय से बहुत आहत थे। दिसम्बर 1922 में कांग्रेस का गया (बिहार) अधिवेशन आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता देशबन्धु चितरंजन दास ने की। इस अधिवोशन में कांग्रेस के सदस्यों में कुछ मुद्दों पर गतिरोध उत्पन्न हो गया। देशबन्धु के समर्थक परिवर्तन चाहते थे और गांधी के समर्थक किसी भी प्रकार के परिवर्तन के विरुद्ध थे। देशबन्धु का प्रस्ताव गिर गया और उनकी अध्यक्ष के रुप में स्थिति कमजोर हो गयी। दूसरी तरफ पंडित मोती लाल नेहरु ने कांग्रेस मुक्त स्वराज पार्टी के गठन की घोषणा कर दी। इस तरह देशबन्धु कांग्रेस से अलग होकर स्वराज्य पार्टी के अध्यक्ष नियुक्त हुए। सुभाष इन सभी गतिविधियों में अपने गुरु के साथ थे।
1923 के मध्य तक देशबन्धु चितरंजन दास ने स्वराज्य पार्टी को मजबूत आधार दिया। इसी साल देशबव्धु और सुभाष की देखरेख में दैनिक अंग्रेजी पत्र ‘फारवर्ड’ का प्रकाशन शुरू हुआ, जो बहुत ही कम अवधि में देश का प्रमुख दैनिक पत्र बन गया। सुभाष ने स्वराज्य के कार्यों के साथ ही युवा संगठन की योजना को गति प्रदान। इन्होंने ऑल बंगाल यूथ लीग का भी गठन किया, जिसका अध्यक्ष भी इन्हीं को बनाया गया। 1923 में पार्टी संगठन में इन्हें बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महासचिव की जिम्मेदारी दी गई।
सुभाष द्वारा मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रुप में किये गये कार्यों के द्वारा भारत में नागरिक उन्नति के नये युग की नींव रखी गयी। पहली बार ख़ादी नगर निगम के कर्मचारियों की वर्दी बनी, ब्रिटिश नामों से प्रसिद्ध कई सड़कों और पार्कों के नाम महान भारतीय व्यक्तित्वों के नाम पर रखे गये। एक योग्य शिक्षा अधिकारी की देखभाल में निगम शिक्षा विभाग की स्थापना की गयी। निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षा की शुरुआत हुई। नगर निगम द्वारा संचालित स्वास्थ्य समितियाँ गठित की गयीं। गरीबों के लिये प्रत्येक मंडल में फ्री मेडिकल स्टोर खोले गये और कुछ स्थानों पर बाल चिकित्सालय भी खोले गये, जहां जरुरतमंद बच्चों को दूध भी दिया जाता था।
सुभाष चन्द्र बोस हर जगह इन योजनाओं के क्रियान्वयन का निरीक्षण करते थे। अल्प समय में ही इन्होंने नगर निगम के कार्यों को नयी दिशा दे दी। जगह-जगह सम्मान समारोह में आने वाले उच्च पद के ब्रिटिश अधिकारियों के स्थान पर शहर में आने वाले राष्ट्रवादी नेताओं का स्वागत सत्कार किया जाने लगा। जन-जागृति के लिये ‘कलकत्ता म्यूनिसिपल गैजेट’ सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरु कर दिया गया। सुभाष चन्द्र बोस अपने खर्च के लिये आधा वेतन रखकर शेष दान कर देते थे। इस तरह सुभाष जल्द ही कलकत्ता के नायक बन गए