मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से भारतीय जनता पार्टी पर एक लम्बे अंतराल के बाद लगाए गए आरोपों से सियासी गलियारों में सरकार की खरीद-फरोख्त के मसले ने चर्चा का बाजार गर्म कर दिया है। मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र के साथ-साथ अपनी सरकार को अस्थिर करने का गंभीर आरोप केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर मढ़ा है। गहलोत की इस बयानबाजी से यह भी साफ हो रहा है कि पार्टी में ऑल इज वेल अब भी नहीं है।
मुख्यमंत्री गहलोत के बयान से यह भी साफ है कि भले ही पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और गहलोत खेमे के बीच सुलह-समझौतों की बात हो रही हो, लेकिन दोनों गुटों के दिल अब भी नहीं मिले हैं। मुख्यमंत्री गहलोत का ताजा बयान साफ कर रहा है कि वे पायलट गुट के साथ अब भी सुलह के मूड में नहीं हैं। राजस्थान में कांग्रेस की लड़ाई मुख्यमंत्री पद की है।
हालात ये है कि विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा के कैबिनेट मंत्री के पद गए तो मुकेश भाकर को यूथ कांग्रेस अध्यक्ष और राकेश पारीक को सेवादल के अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा। वे फिलहाल हाशिये पर है। शेष बचे विधायकों में से कुछ को भले ही पंचायती राज चुनावों और निकाय चुनावों में पर्यवेक्षक के तौर पर जिम्मेदारी दी गई हो, लेकिन उनके पास खोने को कुछ नहीं है।
सियासी उठापटक के दौरान गहलोत के साथ रहे विधायकों को सरकार में हिस्सेदारी का वादा किया गया था, उनके लिए न तो अब तक प्रदेश में कैबिनेट विस्तार हुआ है और न ही विधायकों को राजनीतिक नियुक्तियों के तौर पर एडजस्ट किया गया है। ऐसे में चिंता ये भी है कि कोई नया नाराज खेमा न बन जाए।
एक तरफ दिल नहीं मिलने के कारण पायलट गुट के नेताओं को सत्ता में हिस्सेदारी देने से गुरेज हैं तो दूसरी तरफ पायलट गुट की नाराजगी के बाद बनी एआईसीसी के पदाधिकारियों की कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है। बसपा के विधायकों ने कांगे्रस पार्टी ज्वाइन कर ली है। इससे प्रदेश में कांग्रेस विधायकों की संख्या 107 हो गई थी। इसमें से 19 विधायकों के बगावत करने से ये संख्या घटकर 88 रह गई, जिसमें 10 निर्दलीय, 2 बीटीपी, 1 आरलडी और 2 माकपा के विधायकों को जोडक़र संख्या 103 हो गई थी।
गहलोत खुद राजस्थान में रहना चाहते हैं। ऐसे में वे कांग्रेस आलाकमान को संकेत भी दे रहे हैं कि उनके बिना राजस्थान में सरकार नहीं चलेगी। BJP षडय़ंत्र कर उसे गिरा देगी। ऐसे में गहलोत दिल्ली को ये संकेत दे रहे हैं कि उन्हें दिल्ली की राजनीति से दूर रखा जाए। अगर उन्हें दिल्ली में कोई पद देना भी है तो उसके साथ राजस्थान की जिम्मेदारी भी बरकरार रखी जाए।