लोन मोरेटोरियम फैसले पर अमल न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताया असंतोष, केंद्र सरकार को दिया य निर्देश

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नई दिल्ली, 14 अक्टूबर यूपी किरण। लोन मोरेटोरियम मामले पर दो करोड़ रुपये तक के लोन पर चक्रवृद्धि ब्याज माफ करने की प्रक्रिया शुरू न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने असंतोष जताया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को 2 नवम्बर तक इसके लिए नोटिफिकेशन जारी करने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अच्छी बात है कि सरकार ने आम कर्जदारों की तकलीफ तो समझी लेकिन फैसला जल्द से जल्द लागू हो। अगली सुनवाई 2 नवम्बर को होगी।
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सरकार ने पिछले हफ्ते हलफनामा दाखिल कर कहा था कि कोरोना महामारी में विभिन्न क्षेत्रों को ज्यादा राहत देना संभव नहीं है। सरकार ने कहा था कि कोर्ट को राजकोषीय नीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। सरकार ने कहा था कि दो करोड़ रुपये तक के कर्ज के लिए चक्रवृद्धि ब्याज माफ करने के अलावा कोई और राहत राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र के लिए हानिकारक है। पिछले 5 अक्टूबर को कोर्ट ने कहा था कि सरकार ने 2 अक्टूबर को एक हलफनामा दाखिल किया। उस हलफनामे पर अलग-अलग पक्षों का कहना है कि इसमें सभी सेक्टर की बात नहीं की गई है। न ही अब तक सेक्टर्स को लेकर सर्कुलर जारी हुए हैं। केंद्र सरकार ने नया हलफनामा दाखिल करने की बात कही है। कोर्ट ने केंद्र को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
सुनवाई के दौरान रियल एस्टेट डेवलपर्स ने सरकार के हलफनामे पर एतराज़ जताया था । रियल एस्टेट डेवलपर्स ने कहा था कि रियल एस्टेट सेक्टर के लिए कुछ भी नहीं किया गया। सरकार के आंकड़ों का आधार नहीं है। सरकार ने सिर्फ 2 करोड़ तक के कर्ज पर चक्रवृद्धि ब्याज में रियायत की बात कही है। तब कोर्ट ने कहा था कि कामत कमेटी की रिपोर्ट का क्या हुआ। उसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है। तब रिजर्व बैंक की ओर से कहा गया था कि कमेटी का गठन अलग-अलग सेक्टर की लोन रिस्ट्रक्चरिंग के लिए किया गया था । तब कोर्ट ने कहा था कि आप हर सेक्टर को ज़रूरत के मुताबिक राहत पर विचार करें।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिछले 28 सितम्बर को सुनवाई के दौरान कहा था कि इस बारे में निर्णय प्रक्रिया अंतिम दौर में है इसलिए इस मामले पर फैसले के लिए थोड़ा समय दिया जाए। पिछले 10 सितम्बर को सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा था कि इस मामले में दो से तीन दौर की बैठकें हुई हैं। जल्द ही इस पर फैसला लिया जाएगा। तब याचिककर्ता के वकील ने कहा था कि हमें खुशी है कि सरकार कारपोरेट लोन का पुनर्गठन करने की कोशिश कर रही है, लेकिन यह याद रखना ज़रूरी है कि आम लोग पीड़ित हैं।
कोर्ट ने पिछले 3 सितम्बर को लोन के ईएमआई का भुगतान न होने के आधार पर किसी भी खाते को एनपीए घोषित नहीं करने का अंतरिम आदेश दिया था। सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा था कि जब मोरेटोरियम योजना लाई गई तो मकसद यह था कि व्यापारी उपलब्ध पूंजी का ज़रूरी इस्तेमाल कर सकें। उन पर बैंक की किश्त का बोझ न हो। मकसद यह नहीं था कि ब्याज माफ कर दिया जाएगा। कोरोना के हालात का हर सेक्टर पर अलग-अलग असर पड़ा है। फार्मा, आईटी जैसे सेक्टर ने अच्छा प्रदर्शन भी किया है। तब कोर्ट ने पूछा था कि हमारे सामने सवाल यह रखा गया है कि आपदा राहत कानून के तहत क्या सरकार कुछ करेगी। हर सेक्टर को स्थिति के मुताबिक राहत दी जाएगी।
सुनवाई के दौरान बैंकों के समूह के वकील हरीश साल्वे ने कहा था कि हर सेक्टर के लिए भुगतान का अलग प्लान बनाया जाएगा। उन्हें नया लोन भी दिया जाएगा। हमें लोन लेने वाले सामान्य लोगों के लिए भी सोचना है। उनकी समस्या उद्योग से अलग है। तब कोर्ट ने कहा था कि एक तरफ मोरेटोरियम, दूसरी तरफ ब्याज पर ब्याज। दोनों साथ में नहीं चल सकते।
तब मेहता ने कहा था कि सर्कुलर कहता है कि लोन रिस्ट्रक्चरिंग उसी की होगी, जिसका अकाउंट फरवरी तक डिफॉल्ट में नहीं था। तब कोर्ट ने पूछा था कि यानी जिसने पहले डिफॉल्ट किया था, फिर लॉकडाउन में और ज़्यादा दिक्कत में आ गया। उसको कोई राहत नहीं दी जाएगी। तब साल्वे ने कहा था कि जिन्होंने पहले भी डिफॉल्ट किया था, वैसे लोग बैंक से अलग से राहत मांग सकते हैं। उन्हें कोरोना वाली योजना का लाभ नहीं मिलेगा। तब कोर्ट ने कहा था कि सब कुछ बैंक पर नहीं छोड़ा जा सकता। हरीश साल्वे ने कहा कि रिजर्व बैंक एक कमेटी बनाए, जिसमें बैंकों के प्रतिनिधि हों।
याचिकाकर्ता के वकील राजीव दत्ता ने कहा था कि जिन्होंने बैंक के कहने पर सुविधा का लाभ लिया, उनसे अब ब्याज पर ब्याज नहीं वसूला जा सकता। दूसरे देशों में नागरिकों की मदद की जा रही है। यहां बैंक कोरोना से फायदा कमाना चाहते हैं। रिजर्व बैंक भी इसे शह दे रहा है।

 

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