शिक्षक ही मनुष्य जीवन को बनाता है सार्थक

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शिक्षक या गुरु ही हमें मनुष्य बनाता है। शिक्षक जीवन को प्रकाशित करता है। शिक्षक हमे अँधेरे से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है। शिक्षक अपने शिक्षा के ज़रिये व्यक्ति ,समाज और राष्ट्र का निर्माण करता है। शिक्षा की वजह से व्यक्ति में आत्मविश्वास का संचार होता है। शिक्षा ही वह मज़बूत ताकत है, जिससे हम समाज को सकारात्मक बदलाव की ओर ले जा सकते है। शिक्षक एक सभ्य समाज का निर्माण करता है। भारत में तो प्राचीन काल से ही शिक्षा का अति महत्व रहा है।

शिक्षक ही छात्रों का मार्ग दर्शक है, जो ज़िन्दगी के कठिन मोड़ पर अपनी भूमिका निभाता है। कम उम्र में बच्चे का जीवन गीली मिटटी की तरह होता है, शिक्षक एक कुम्हार की तरह उसे शिक्षा रूपी हाथों से एक मज़बूत और सुंदर आकार प्रदान करता है। यदि शिष्य के मन में विषय संबंधित और जीवन संबंधित कोई भी दुविधा आये तो शिक्षक उस दुविधा को हल करने में हर मुमकिन कोशिश करता है। शिक्षक के मार्ग दर्शन से ही कोई डॉक्टर ,कोई इंजीनियर ,कोई वकील ,पायलट ,सैनिक इत्यादि बन जाते है। शिक्षक इंसान को अच्छे और बुरे के बीच फर्क करना सिखाते है।

शिक्षक हमे जीवन में अनुशासन का पाठ पढ़ाते है। समय की महत्ता बताते हैं। इसलिए विद्यार्थी जीवन में समय की अधिक महत्ता होती है। भविष्य में भी मनुष्य इस सीख को कभी नहीं भूलता है। इससे वह कार्य को समन्वय कर सकता है। शिक्षक द्वारा दी गयी शिक्षा सम्पूर्ण राष्ट्र का निर्माण में सहायक होता है। उसकी शिक्षा की वजह से एक शिक्षित वर्ग और समाज तैयार होता है। विद्यार्थी बड़े होकर भी अपने शिक्षक को कभी नहीं भूलते है।

योग्य शिक्षक के बिना समाज और राष्ट्र भटक जाता है। इतिहास गवाह है कि समाज और राष्ट्र को हमेशा शिक्षकों ने ही मजबूती प्रदान की है। जिस देश में शिक्षस को अहमियत नहीं दी जाती वह देश अराजक होकर टूट जाता है। इसीलिए तो हमारे ऋषियों ने शिक्षा को जीवन का धेय्य बताया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी दुनिया के सभी लोगों को शिक्षित करना अपना धेय्यघोषित किया है। इसके लिए वह भारत समेत अनेक देशों से सहयोग ये रहा है।

सच कहा जाय तो शिक्षक ही हमे ज्ञान के माध्यम से भवसागर से पार लगाता है। शिक्षक के बिना मानव समाज सभ्य नहीं हो सकता। नहीं शिक्षक अपना पूरा जीवन अपने शिष्यों के विकास में समर्पित कर देता है। इसीलिए तो कहा गया है –

‘गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।’

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