इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में उकेरी गयी मुग़ल शासकों और साम्राज्य की छवि को लेकर हमेशा से एक बहस छिड़ी रहती है। मगर मौजूदा दौर में यह बहस तीख़ी होने लगी है, जिसका नमूना पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर देखा जा रहा है और इसी के चलते बुधवार को दिनभर मुग़ल (Mughal) शब्द ट्रेंड बना रहा।
ऐसे मौक़े पर डिज़्नी प्लस हॉटस्टार द एम्यायर वेब सीरीज़ लेकर आया है, जिसमें भारत में मुग़ल शासन की नींव डालने वाले पहले मुग़ल शासक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर की कहानी दिखायी गयी है। यह वेब सीरीज़ किसी भी तरह निर्माताओं के नज़रिए को ज़ाहिर नहीं करती। निर्माताओं ने इस काल्पनिक कहानी को दिखाने में कुछ सिनेमाई आज़ादी ज़रूर ली है।
लेकिन , द एम्पायर ऐतिहासिक घटनाओं, पीरियड और कॉस्ट्यूम ड्रामा पसंद करने वालों के लिए मुकम्मल एक शो है, जिसकी सीधी-सपाट कहानी को ट्विस्ट देने की ज़िम्मेदारी महिला किरदारों ने उठायी है और इन्हीं महिला किरदारों की साजिशें के चलते हमेशा असमंजस में रहने वाला एक बच्चा साम्राज्य जीतने वाला बादशाह बाबर बनता है। रदरफोर्ड की किताब में दी गयी घटनाओं को द एम्पायर के आठ एपिसोड्स में समेटा गया है। हर एक एपिसोड की 30 से 50 मिनट के बीच है।
रदरफोर्ड की किताब की कहानी पर शो का स्क्रीन प्ले निर्देशक मिताक्षरा कुमार और भवानी अय्यर ने लिखा है, जिसकी शुरुआत 1526 ईस्वी में पानीपत की पहली लड़ाई से होती है। बाबर और इब्राहिम लोदी की फौजों के बीच भीषण जंग चल रही है। जंग के दृश्यों के बीच बाबर हिंदुस्तान आने तक के अपने सफ़र को याद कर रहा है और बाबर बने कुणाल कपूर के नैरेशन के साथ कहानी फ्लैश बैक में फरगाना (उज़्बेकिस्तान) पहुंचती है, जहां चौदह साल के बाबर को उसके पिता उमर खुसरो की ब्रज और फारसी भाषा में मिश्रित रचना सुना रहे हैं और बताते हैं कि कैसे अमीर खुसरो ने ब्रज और फारसी भाषाएं बिल्कुल अलग होने के बावजूद उन्हें एक ही रचना में गूंथ दिया है। कुछ यही हिंदुस्तानी समाज की पहचान है।
पिता की कहानियों के साथ बाबर की दिलचस्पी हिंदुस्तान में बढ़ने लगती है और हिंदुस्तान जाना उसका सबसे अहम ख़्वाब बन जाता है। उधर, समरकंद में कबीलाई आक्रांता शैबानी ख़ान का आतंक बढ़ रहा है, जिसने वहां के शासक को मारकर समरकंद पर कब्ज़ा कर लिया है और अब उसकी नज़र फरगाना पर है। शैबानी ने फरगाना छोड़ने के लिए उमर शेख़ को संदेश भेज दिया है। शैबानी की फौज का मुक़ाबला करने के लिए उमर शेख़ को एक बड़ी फौज की ज़रूरत थी।
इसलिए अपने विश्वासपात्र वज़ीर ख़ान से सलाह करके वो बाबर की शादी काबुल के शासक की बेटी गुलरुख से करवाना चाहता है, जिससे फरगाना और काबुल की फौजें मिलकर शैबानी का मुक़ाबला कर सकें। मगर, इस योजना को अमलीजामा पहनाने से पहले ही उमर शेख़ की हादसे में मौत हो जाती है और 14 साल के बाबर को फरगाना के तख़्त पर बैठा दिया जाता है। बाबर समरकंद को शैबानी ख़ान से छुड़ाने के लिए निकलता है।
उधर, शैबानी ख़ान फरगाना पर कब्ज़ा कर लेता है और बाबर की नानी एसान दौलत, मां कुतलुग़ और बहन खानज़ादा को कै़द कर लेता है। बाबर समरकंद जीत लेता है, मगर अपने परिवार को छुड़ाने की एवज़ में समरकंद शैबानी को दे देता है। शैबानी खानज़ादा को छोड़कर बाक़ी सबको जाने देता है। बाबर के पास अब ना फरगाना रहता है और ना समरकंद। अब बाबर कैसे शैबानी ख़ान से जीतता है? फरगाना और समरकंद का क्या होता है? काबुल का शासक बाबर कैसे बनता है और किन हालात में वो हिंदुस्तान का रुख़ करने को बाध्य होता है? यह सब घटनाएं द एम्पायर के आठ एपिसोड्स की रचना करती हैं।
शुरुआत दो एपिसोड्स को छोड़ दें तो द एम्पायर की कहानी पकड़कर रखती है और सीन-दर-सीन आने वाले ट्विस्ट ध्यान भटकने नहीं देते। स्क्रीनप्ले में दृश्यों की बुनावट दिलचस्प है। हालांकि, अगर आप विदेशी हिस्टोरिकल वेब सीरीज़ देखने के शौक़ीन हैं तो कई दृश्यों का प्रस्तुतिकरण आपको देखा-देखा लगेगा, मगर इसका मतलब यह नहीं कि यह दृश्य बोर करते हैं।
हालांकि, यह ट्विस्ट अप्रत्याशित नहीं है। शुरुआत एपिसोड्स में डीनो बाबर का किरदार निभा रहे कुणाल कपूर पर भारी पड़े हैं, मगर बाद कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, कुणाल बाबर के किरदार में दाख़िल हो जाते हैं। जैसा मैंने पहले कहा, सीरीज़ को ट्विस्ट देने का काम महिला किरदारों ने किया है।
लगभग सभी प्रमुख महिला किरदार किसी ना किसी के लिए साजिश रचते नज़र आ रहे हैं। सोच में पुरुष किरदारों से अधिक बर्बर यह महिला किरदार हैं। फिर चाहे बाबर की नानी एसान दौलत हो या बाबर की दूसरी पत्नी गुलरुख या फिर बाहर की बहन खानज़ादा। एसान दौलत के किरदार में शबाना आज़मी ने बेहतरीन काम किया है। हालांकि, उन्हें इस किरदार में जज़्ब करने में थोड़ा वक़्त लगता है।
खानज़ादा के रूप में दृष्टि धामी को एक बेहद मजबूत और अदाकारी की सम्भावनाओं वाला किरदार मिला है, जिसे निभाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। वज़ीर ख़ान के किरदार में राहुल देव की अदाकारी और सधी हुई संवाद अदाएगी सुकून देती है। सनी देओल निर्देशित पल पल दिल के पास से एक्टिंग में डेब्यू करने वाली सहर बाम्बा की दूसरी स्क्रीन एपीयरेंस है।
बाबर के पत्नी महम बेगम और मल्लिका-ए-हिंदुस्तान के किरदार में सहर हल्की लगी हैं। ख़ासकर, हुमायूं बने आदित्य सील की मां के किरदार में सहर की कास्टिंग बेढब लगती है। बाबर के बचपन के सहयोगी और सलाहकार कासिम के किरदार इमाद शाह ने ठीक काम किया है, मगर इस किरदार को जिस तरह पेश किया गया है, वो उस कालखंड में फिट नहीं लगता, जिसमें सीरीज़ स्थापित की गयी है।
तकनीकी पक्ष की बात करें तो द एम्पायर का लुक प्रभावित तो करता है, मगर सीजीआई और वीएफएक्स के कुछ दृश्य बनावटी लगते हैं। ख़ासकर, फरगाना, समरकंद और काबुल में दिखाये गये महल और क़िलों के विहंगम दृश्यों नकली लगते हैं। वहीं, जंग के कुछ दृश्यों में वीएफएक्स कमज़ोर लगता है। निर्देशक मिताक्षरा कुमार का स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर यह पहला शो है।
हालांकि, हिंदुस्तान में बाबर के शासन को आवाम के नज़रिए के बजाय पारिवारिक साजिशों के मद्देनज़र अधिक दिखाया गया है। द एम्पायर वेब सीरीज़, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की दुनिया में कोई क्रांतिकारी शो तो नहीं है, मगर भारत के पहले मुग़ल शासक की हिंदुस्तान पहुंचने की कहानी को दिलचस्प तरीक़े से दिखाता है, जो बोर नहीं करता।
निर्देशक- मिताक्षरा कुमार
निर्माता- निखिल आडवाणी
स्टार- *** (तीन स्टार)