Up Kiran, Digital Desk: यार, अगर आप क्रिकेट फैन हैं और पाकिस्तान क्रिकेट को फॉलो करते हैं, तो एक बात तो आप भी मानेंगे—PCB में कभी भी 'शांति' नहीं रहती। वहां हर दूसरे दिन कोई आ रहा होता है या कोई जा रहा होता है। ताज़ा खबर यह है कि अजहर अली ने भी अब हाथ खड़े कर दिए हैं।
जी हाँ, पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) की सिलक्शन कमिटी में चल रही उथल-पुथल रुकने का नाम नहीं ले रही। पूर्व कप्तान और हाल ही में चयनकर्ता (Selector) की भूमिका में आए अजहर अली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। हैरानी की बात यह है कि उन्हें जिम्मेदारी संभाले हुए अभी जुम्मा-जुम्मा कुछ हीमहीने (मात्र 1-2 महीने के आसपास) हुए थे और उन्होंने 'टाटा-बाय बाय' बोल दिया।
आखिर क्यों छोड़ा अजहर अली ने साथ?
कहने को तो वजह "निजी कारण" बताई जा रही है, जैसा कि अक्सर होता है। लेकिन अंदरखाने की खबर कुछ और ही इशारा करती है। रिपोर्ट्स की मानें तो अजहर अली सिस्टम के काम करने के तरीके और चयन प्रक्रिया में मिल रही 'फ्रीडम' से खुश नहीं थे।
आपको याद होगा कि अभी कुछ दिन पहले ही पीसीबी चेयरमैन मोहसिन नकवी ने साफ़ किया था कि सिलेक्शन कमेटी को 'फ्री हैंड' दिया जाएगा। लेकिन अजहर अली का इतनी जल्दी इस्तीफ़ा देना [3]बताता है कि दाल में कुछ न कुछ काला ज़रूर है। बताया जा रहा है कि यूथ डेवलपमेंट और सीनियर टीम के चयन को लेकर विजन में टकराव हो रहा था।
तमाशा बन गया है चयन प्रक्रिया?
एक आम फैन के नज़रिये से देखें, तो यह सचमुच किसी मजाक जैसा लगता है। सोचिये, टीम का प्रदर्शन पहले ही डांवाडोल चल रहा है, चैंपियंस ट्रॉफी और बड़े टूर]्नामेंट्स सर पर हैं, और यहाँ चयनकर्ताओं की टीमही सेट नहीं हो पा रही।
कभी आकिब जावेद पावर में आते हैं, कभी अलीम डार का नाम आता है, और अब अजहर अली जैसे संजीदा इंसान का यूँ बीच मझधार में साथ छोड़ जाना, पाकिस्तान क्रिकेट के 'स्ट्रक्चर' पर बड़े सवाल खड़े करता है। यह सिर्फ़ एक नहीं है, यह उस अस्थिरता (instability) का सबूत है जो पीसीबी के गलियारों में छायी हुई है।
टीम पर क्या होगा असर?
इसका सीधा असर खिलाड़ियों के मनोबल (Morale) पर पड़ता है। जब 'बॉस' ही हर महीने बदल रहे हों, तो खिलाड़ी किस पर भरोसा करें? कप्तान और कोच के लिए भी यह सिरदर्दी है कि वह अपनी रणनीतियां किसके साथ साझा करें।
कुल मिलाकर, पाकिस्तान क्रिकेट में 'ड्रामा' अभी जारी है। अजहर अली तो चले गए, लेकिन बड़ा सवाल यह है—क्या अगला चयनकर्ता टिक पाएगा? या फिर कुछ महीनों बाद हम फिर से ऐसी ही कोई ख़बर पढ़ रहे होंगे?
अपनी राय ज़रूर दें—क्या पीसबी को अब पूरी तरह से बदलने की ज़रूरत है?
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