दलितों पर झलका समाजवादियों का प्रेम, जानिए वजह

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लखनऊ। सभी पार्टी अपना संगठन मजबूत करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लागाती है इसमें को दोराय की बात नहीं है। लेकिन इन दिनों समाजवादी पार्टी भी दलितों को जोड़ने की कोशिश में जुटी है। जी हां वहीं आपकों बतादें की, संगठन को मजबूत करने में जुटी समाजवादी पार्टी नवनिर्वाचित जिला व महानगर अध्यक्षों को विधानसभा चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं देगी।

संगठन के अहम पदों पर आसीन पदाधिकारियों को पूरा समय संगठनात्मक गतिविधियों में देना होगा, ताकि भाजपा को मजबूती से जवाब दिया जा सके। संगठन और जनप्रतिनिधियों को एक-दूसरे का पूरक बनाने की रणनीति पर समाजवादी पार्टी संगठनात्मक ढांचा तैयार कर रही है।

बीते दिनों पार्टी की ओर से जारी जिलाध्यक्षों की पहली सूची में 15 अध्यक्ष, चार उपाध्यक्ष व एक महामंत्री के नामों की घोषणा की गई थी। इसमें पार्टी के मूल वोटबैंक को जोड़े रखने के साथ अन्य वर्गों को भी प्रतिनिधित्व दिया गया। सूत्र बताते हैं कि इस माह के अंत तक अधिकतर जिलों में संगठन तैयार हो जाएगा और ब्लॉक कमेटियों के गठन की शुरुआत भी कर दी जाएगी। फ्रंटल संगठनों के पुनर्गठन का कार्य भी आरंभ होगा।

संगठन का काम चुनावी सीजन में प्रभावित न हो, इसलिए पदाधिकारियों की नियुक्ति से पूर्व उनकी चुनावी मंशा भी जानी जा रही है। खासकर जिलाध्यक्षों को टिकट न मांगने का लिखित वचन देना होगा। प्रदेश संगठन के एक पूर्व पदाधिकारी का कहना है कि चुनाव के समय अध्यक्ष ही टिकट पाने की कतार में लग जाता है तो संगठन में बिखराव आरंभ होता है, जिसका नुकसान चुनाव में उठाना पड़ता है।

वहीं बसपा और भाजपा जैसी पार्टियां संगठन पर ही अधिक ध्यान देती हैं। वहां पूर्णकालिक पदाधिकारियों की व्यवस्था चुनावों में उम्मीदवारों के लिए वरदान सिद्ध होती है। संगठन में नए चेहरों को तरजीह देने के पीछे वर्ष 2022 व वर्ष 2024 के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन की मंशा है। बिना गठबंधन अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव नई चुनौतियों से लड़ने वाली टीम तैयार करना चाहते हैं। इसके लिए युवाओं को आगे लाने के साथ सोशल मीडिया में दक्ष पदाधिकारियों की टोली तैयार की जाएगी।

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