रामायण और महाभारत से जुड़ी है छठ पर्व की मान्यता, जानिए कब से मनाया जा रहा है ये त्योहार

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अजब-गजब॥ कार्तिक महीने की षष्ठी तिथि से शुरु होने वाला छठ पर्व हिंदूओं की गहरी आस्था का प्रतीक है। इस पर्व पर भगवान सूर्य देव की आराधना की जाती है। भारत के बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्यों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने वाला यह त्योहार बहुत ही कठिन माना जाता है। इस व्रत से जुड़ी अनेक मान्यताएं है जिनके बारे में बहुत से लोगों को पता भी नहीं है। तो चलिए आज हम आपको छठ पर्व से जुड़ी कुछ रोचक किंवदंतियों के बारे में बताते हैं।

नहाय-खाय से शुरू होने वाले छठ पर्व के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरूआत महाभारत़ काल से ही हो गई थी। एक कथा के अनुसार महाभारत़ काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने इस चार दिनों के व्रत को किया था। इस पर्व पर भगवान सूर्य की उपासना की थी और मनोकामना में अपना राजपाट वापस मांगा था। इसके साथ ही एक और मान्यता प्रचलित है कि इस छठ पर्व की शुरूआत महाभारत़ काल में कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के अन्नय भक्त थे और पानी के घंटो खड़े रहकर सूर्य की उपासना किया करते थे। जिससे प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उन्हें महान योद्धा बनने का आशीर्वाद दिया था।

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किंवदंती के अनुसार, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।

छठ पर्व को लेकर एक मान्यता है कि इसी दिन मां गायत्री का जन्म हुआ था। छठ पर्व की उपासना सूर्य की उपासना का त्योहार है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सूर्यदेव की पूजा करने से व्रत करने वालों को सुख, सौभाग्य और समृद्घि की प्राप्ति होती है। इस दिन किसी नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

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