Taliban की वापसी अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय कूटनीति की अग्निपरीक्षा

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अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) की वापसी से पूरी दुनिया सहमी हुई है। अरसे से युद्धग्रस्त इस पडोसी देश पर तालिबान का नियंत्रण भारत के लिए ख़ास चिंता का सबब है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के जानकारों का कहना है कि अफगानिस्तान में आतंक की जीत से पकिस्तान में बैठकर भारत में तबाही मचाने का मंसूबा पाले लश्कर-ए-तोयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों का मनोबल बढ़ेगा। इसके अलावा विगत दो दशकों में भारत ने अफगानिस्तान में करीब 22 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया है। तालिबान के अफगानिस्तान में सत्तासीन होने के बाद भारत के इस निवेश का क्या होगा? चाबहार पोर्ट से मध्य एशिया को जोड़ने की योजना का क्या होगा?

Modi Doval Jai shankar - Taliban

बदली हुई परिस्थितियों में अफगानिस्तान को लेकर दुनिया के ताकतवर देश बैठकें कर रहे हैं। रूस, चीन, ईरान और पाकिस्तान एकजुट होकर तालिबान (Taliban) की हिमायत कर रहे हैं। फिलहाल, भारत अभी देखो और प्रतीक्षा करो की ही नीति पर चल रहा है। शायद यही वजह है कि दुनिया के इस सबसे संवेदनशील और नाजुक मुद्दे पर अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चुप्पी ही साधे हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार अफगानिस्‍तान में भारतीय विदेश नीति की असल परीक्षा होनी है।

मध्यकालीन बर्बर मानसिकता से ग्रस्त तालिबान (Taliban) की अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी से कश्मीर के हालात और बिगड़ सकते हैं। इससे पहले भी तालिबान जम्मू-कश्मीर में अशांति फैलाने की कोशिशें करता रहा है। तालिबान ने ही कश्मीर समेत पूरे भारत में विध्वंसक कार्यवाइयों को अंजाम देने के लिए जैश-ए-मुहम्मद को प्रशिक्षित करने में मदद की थी। जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर तालिबान के साथ अरसे तक रह चुका है।

जैश-ए-मुहम्मद के अलावा भी कई इस्लामिक आतंकी संगठन अभी भी तालिबान (Taliban) के साथ मिलकर अफगानिस्तान में जंग लड़ रहे हैं। कुछ महीने पहले भारतीय सुरक्षा एवं खुफियां एजेंसियों ने देश के कई हिस्सों से इस संगठनों से जुड़े लोगों को दबोचा है। इसके अलावा देश भर में आतंकी संगठनों के स्लीपिंग माड्यूल्स हैं, जिनका इस्तेमाल दहशत फैलाने के लिए किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है की अफगानिस्तान में विगत दो दशकों में भारत ने बड़ा निवेश किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार अफगानिस्तान में भारत के 400 से अधिक छोटे-बड़े प्रोजेक्ट हैं। भारत ने लगभग 675 करोड़ रुपए खर्चकर अफगानिस्तान की संसद का निर्माण किया है, जिसका उद्घाटन वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। अफगानिस्तान की संसद में एक ब्लॉक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर भी है। (Taliban)

इसी तरह भारत ने अफगानिस्‍तान के हेरात प्रांत में 42 मेगावॉट का हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट सलमा डैम भी बनाया है। इसे भारत-अफगान मैत्री प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता है। चूँकि हेरात प्रांत अब तालिबान (Taliban) के कब्‍जे में है, इसलिए इसकी सुरक्षा को भी खतरा है। इसी तरह भारत ने जर्जर अफगानिस्तान में 15 करोड़ डॉलर खर्चकर 218 किलोमीटर लंबा हाईवे भी बनाया है, जिसके निर्माण में भारत के 11 लोगों की जान गई थी।

इसी तरह अफगानिस्तान में भारत की मशहूर चाबहार परियोजना पर भी खतरे बढ़ गए हैं। चाबहार परियोजना भारत को मध्य एशियाई देशों से जोड़ने का सुगम मार्ग हो सकता था। अब इस का फायदा पाकिस्तान और चीन को मिलने की संभावना है। चीन पहले से ही अफगानिस्तान में भारी निवेश करने का इच्छुक है। (Taliban)

इन्ही हालातों में अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय कूटनीति की अग्निपरीक्षा होनी है। हालांकि अफ़ग़ानिस्तान के मामले में भारत अमेरिका, रूस, चीन और ईरान से धोखा खा चुका है। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के जानकारों का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान को लेकर पडोसी देशों का रूख भारत के विपरीत है। ऐसे में भारत को बहुत सधी चाल चलनी होगी। कहीं ऐसा न ही की ताकतवर मुल्क अफगानिस्तान को आपस में बाँट न लें। (Taliban)

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