Religious War के मुहाने पर दुनिया, कैसे बचेगी मानवता? कैसे कायम होगी शांति?

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अंतर्राष्ट्रीय डेस्क

अफगानिस्तान में खूंखार तालिबान के सत्तारूढ़ होने के बाद एक बार फिर वैश्विक धर्मयुद्ध (Religious war) के आसार प्रबल हो गए हैं। कभी भी कुछ भो हो सकता है। अगर धर्मयुद्ध हुआ तो विजय तो किसी भी पक्ष की नहीं होगी, हां अमानवता जरूर तबाह हो जायेगी। इस युद्ध का सर्वाधिक असर दक्षिण एशिया, मध्यपूर्व और यूरोप पर पड़ेगा। युद्ध के उपरांत अमेरिका की ताकत चकनाचूर हो जायेगी और विश्व में शक्ति के नए समीकरण बनेंगे। इस्लामिक देशों में भीषण मानवी त्रासदी की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। 

उल्लेखनीय है कि तालिबान और आईएसआईएस जैसे खूंखार आतंकी संगठनों से निपटने के लिए विश्व के प्रमुख देशों में रणनीति तैयार की जा रही है। दूसरे विश्वयुद्ध की तर्ज पर विभिन्न देशों के बीच लामबंदी तेज हो चुकी है। इस महाविनाश की तैयारियों के बीच कुछ संगठन शान्ति की भी अपील कर रहे है, लेकिन शांति की बात कोई सुनने को तैयार नहीं है। सदियों पुरानी धार्मिक रूढ़ियों और विभिन्न धर्मों की बर्बर संकीर्ण सोच के चलते दुनिया तेजी से तबाही की ओर अग्रसर है।

गत 15 अगस्त को तालिबान द्वारा काबुल की सत्ता पर कब्जे के बाद अफगानिस्तान समेत पुरे विश्व में अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया है। अफगानिस्तान से विदेशियों के साथ अफगानी भी देश छोड़कर भाग रहे हैं। भारत सरकार भी अपने नागरिकों के अलावा अफगानी हिन्दुओं, सिक्खों, बौद्धों और ईसाईयों को निकाल रही है। अफगानिस्तान में महिलाओं और बच्चों का बुरा हाल है।

विश्व के मौजूदा उन्मादी माहौल में भारत की स्थिति अजीब है। यहां यहां के मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा तालिबान का समर्थन कर रहा है। हालांकि ज्यादातर भारतीय मुस्लिम तालीबाल और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों में रुचि नहीं रखते हैं। इसके पीछे इन संगठनों का सऊदी अरब के वहाबियत विचारधारा से प्रेरित होना है। भारतीय मुसलमान अरबियों को पसंद नहीं हैं।

इराक, सीरिया, लेबनान, तुर्की, सऊदी अरब, सूडान, लीबिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत समेत कई देश तालिबान और आईएस के निशाने पर हैं। ये आतंकी संगठन इन देशों को दारुल इस्लामिक घोषित कर शरीया कानून थोपना चाहते हैं। ये कट्टरपंथी संगठन अफगानिस्तान और मध्य-पूर्व की प्राचीन धरोहर को काफी हद तक नष्ट कर चुके है। ये संगठन अब यही काम अन्य देशों में भी दोहराना चाहते हैं।

अमेरिका के नेतृत्व में नाटों की सेनाएं तालिबान और आईएस को एक बार परास्त कर चुकी हैं, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में अमेरिका की स्थिति पराजित देश की है। वर्तमान में ईरान, रूस, चीन और पाकिस्तान समेत कई देश तालिबान की सत्ता का समर्थन कर रहे हैं। अमेरिका अलग-थलग पड़ता नजर आ रहा है। कूटनीतिक लिहाज से भारत भी अलग-थलग नजर आ रहा है।

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