UPSIDA: 22 करोड़ के फर्जीवाड़े में फंसे चीफ इंजीनियर अरुण मिश्रा के बाद ये अफसर जाएंगे जेल!

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण पूर्व में (UPSIDC) में वर्षों से काली कमाई का धंधा चलता रहा है। वर्ष 2007 में ठेकेदारों और तत्कालीन अधिकारियों ने गठजोड़ कर 22 करोड़ रूपये जिस काम के भुगतान कराए। वर्तमान में भी वह काम जमीन पर नहीं उतर सका है। उस समय आला अफसरों के संज्ञान में मामला आया भी था। प्रकरण की जांच भी हुई और तीन नामचीन अधिकारियों को जेल भी जाना पड़ा। पर करीबन दो दर्जन से ज्यादा आरोपी अब भी कानून के शिकंजे से बाहर है। सरकारें बदलती गईं। पर जांच रिपोर्ट अब भी धूल फांक रही है। इस बाबत औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना का कहना है कि पूरा मामला मेरी जानकारी में है। मैंने इसकी फाइल तलब कर ली है। इसमें कोई भी आरोपी नहीं बचेगा।

upsida - satish mahana

क्या है मामला दरअसल वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश सरकार ने निगम में भ्रष्टाचार की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था। उसमें मुख्य प्रकरण यह सामने आया था कि 22 करोड़ रूपये काम के मद में ठेकेदारों को एडवांस दिया गया था। पर जिस काम के मद में यह एडवांस दिया गया था। उस साइट पर मैटेरियल तक उपलब्ध नहीं था। इनमें निगम के कई काम थे। जिसके टेंडर हुए थे।

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ठेकेदारों और अधिकारियों ने दुरभिसंधि करके साइट पर मैटेरियल की फर्जी रिपोर्ट बनाकर भुगतान को एडजस्ट कराया। इसकी जांच हुई तो मामला फर्जी पाया गया तो एफआईआर दर्ज हुई। वर्ष 2007 में बाकायदा तत्कालीन चीफ इंजीनियर अरूण कुमार मिश्रा और डिप्टी मैनेजर श्रीनाथ राम को जेल जाना पड़ा। जांच में साफ था कि बिना काम कराए 22 करोड़ रूपये एडजस्ट कर दिये गए। जब इसकी जानकारी प्रबंध निदेशक बलविंदर कुमार को हुई तो उन्होंने ग्रामीण अभियंत्रण सेवा के रिटायर इंजीनियर सिंघल की अगुवाई में एक जांच कमेटी गठित की। कमेटी में सहायक अभियंता जीडी शर्मा और अवर अभियंता एके तिवारी भी थे।

एमडी के ट्रांसफर के बाद दब गया मामला

इनकी जांच रिपोर्ट में सिंघल ने 24 अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र जारी किया और तीन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की संस्तुति की। पर यह जांच रिपोर्ट अब तक फाइलों में दफन है। इसी बीच प्रबंध निदेशक बलविंदर कुमार का निगम से स्थानान्तरण हो गया। इसका फायदा उठाकर उपरोक्त प्रकरण को आरोपी अधिकारियों की मिलीभगत से दबा दिया गया।

पेमेंट का दबाव बनाने पर छोड़ दिया देश

कमेटी में शामिल एके तिवारी पर 42 लाख रूपये का पेमेंट का दबाव बनाया गया तो उन्होंने फर्जी भुगतान से मना कर दिया। पर भ्रष्टाचारियों के काकस के आगे उनकी भी नहीं चली। उन्होंने मजबूरन 2016 में वीआरएस के लिए आवेदन किया और देश छोड़कर चले गए। उनके प्रार्थना पत्र पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जबकि तिवारी के प्रार्थना पत्र में सभी आरोपी अधिकारियों के काले कारनामें दर्ज हैं। इस मामले में एसआईटी जांच भी हुई थी। जानकारों के मुताबिक जांच एजेंसी ने विभागीय जांच आख्या तलब की थी। पर वह जांच रिपोर्ट आज तक एसआईटी को नहीं सौंपी गई है।

प्रकरण पर पर्दा डालने के लिए बाबू पर गिराई गाज

जानकारों के मुताबिक अंतिम समय में पूरे प्रकरण पर पर्दा डालने के लिए कार्रवाई के नाम पर लेखा में काम करने वाले बाबू आरके सैनी को बर्खास्त कर दिया गया तो उन्होंने न्याय के बाबत आला अफसरों का दरवाजा खटखटाया। काले कारनामों की पोल पटटी खुलते देख आरोपी अधिकारी अब सैनी की आवाज दबाने के लिए उन्हें प्रलोभन दे रहे तत्कालीन कर्मचारी संघ के नेता दीपचन्द्र श्रीवास्तव ने भी उस मामले में न्याय के लिए पूरजोर कोशिश की थी। पर मामला वर्तमान में भी लंबित है।

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