भगवान कृष्ण की छठी के दिन उन्हें पीले रंग के वस्त्र पहनाये जाते हैं। इस दिन बालक कृष्ण को माखन और मिश्री का भोग लगाया जाता है। इसके साथ ही भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की ही पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन सनातन मतावलंबियों के घरों में विशेष व्यंजन बनते हैं। शाम से लेकर देर रात तक महिलायें सोहर गीत जाती हैं। महिलाये श्रीकृष्ण जैसी संतान की प्राप्ति की कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण छठ उत्सव मनाने वाले भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं।
श्रीकृष्ण के छठ उत्सव पर दही और हांड़ी उत्सव की धूम रहती है। दही हांडी के उत्सव में कई किशोर एक साथ दल बना कर इसमें हिस्सा लेते हैं। किसी खंभे पर दही और मिठाई से भरी हांडी टांग दी जाती है, जिसे विभिन्न कोशोरों के दल तोड़ने का प्रयास करते हैं। दही हांडी तोड़ने के लिए विभिन्न दल के लोग एक दुसरे के पीठ पर चढ़ कर पिरामिड बनाते हैं। इस पिरामिड के सबसे ऊपर सिर्फ एक ही व्यक्ति चढ़ता है और हांडी तोड़कर पर्व को सफ़ल बनाता है। यह एक खेल के रूप में होता है, जिसके लिए पुरस्कार भी दिए जाते हैं।
चूंकि नटखट कृष्ण बचपन में दही, दूध, मक्खन आदि बहुत शौक़ से खाते थे। इन चीजों को बालक कृष्ण से बचाने के लिए माता यशोदा दही की मटकी को किसी ऊँचे स्थान पर टांग देती थी, किन्तु बाल गोपाल वहां तक पहुंचकर मक्क्खन आदि खा जाते जाते थे। नटखट गोपाल की इसी लीला की याद में कृष्ण भक्त अपने दही हांडी का पर्व मनाते हैं।