नई दिल्ली, 23 अप्रैल। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा वैसे तो कई मायनों में महत्वपूर्ण है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच हुई इस यात्रा में दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में बनी सहमति बेहद अहम है। दोनों देशों ने संयुक्त रूप से रक्षा उपकरणों पर शोध करने, उन्हें विकसित करने एवं उत्पादन करने पर सहमति जताई है।
विशेषज्ञ इस समझौते को बेहद महत्वपूर्ण मान रहे हैं, क्योंकि अभी तक संयुक्त रूस से रक्षा तकनीकों का उत्पादन भारत रूस के साथ मिलकर करता है। ब्रिटेन के साथ इस प्रकार के समझौते से भविष्य में वह रूस के बाद भारत का दूसरा बड़ा सहयोगी बन सकता है। भारत के कई देशों के साथ रक्षा समझौते हैं। रक्षा खरीद भी की जाती है। लेकिन एकमात्र रूस ही ऐसा देश है, जिसके साथ मिलकर वह रक्षा सामग्री का उत्पादन भी करता है। इनमें ब्रहमोस मिसाइल और इंडो रशियन राइफल लिमिटेड प्रमुख उपक्रम हैं।
यदि ब्रिटेन से हुआ समझौता आगे बढ़ता है तो भविष्य में इस प्रकार के उपक्रम भारत और ब्रिटेन द्वारा भी स्थापित किए जा सकते हैं। दोनों देशों द्वारा जारी संयुक्त बयान के अनुसार, ब्रिटेन का रक्षा विज्ञान एवं तकनीक प्रयोगशाला तथा भारत का डीआरडीओ मिलकर रक्षा तकनीकों के विकास के लिए शोध करेंगे और उभरती सैन्य तकनीकें विकसित करेंगे।
दोनों देश संयुक्त रूप से उनका उत्पादन भी करेंगे, जिससे दोनों देशों के सशस्त्र बलों की जरूरतें पूरी होंगी। इसमें इलेक्ट्रिक प्रपल्सन को लेकर ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप बनाने की भी बात कही गई है। यह तकनीक नौसेना के पोतों एवं पनडुब्बियों के निर्माण के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
बता दें कि दोनों देश समग्र रणनीतिक साझेदारी के लिए उभरती तकनीकें विकसित करने के अलावा आधुनिक लड़ाकू विमानों, जेट इंजन एडवांस्ड कोर टेक्नोलॉजी, रक्षा प्लेटफॉर्म, कल पुर्जे और अन्य कंपोनेंट बनाने के लिए भी काम करेंगे। ब्रिटेन की तकनीक और निवेश से इन रक्षा सामानों का देश में निर्माण होगा तो इससे भारत की जरूरतें पूरी होंगी और उसे दूसरे देशों को निर्यात भी किया जा सकेगा।