नई दिल्ली॥ पूरे विश्व में कोविड-19 महामारी काल बनकर टूट रही है। बीते 6 महीनों में 2 करोड़ से ज्यादा लोग इस वायरस की गिरफ्त में आ चुके हैं, तो मृतकों वालों की संख्या 7 लाख 34 हजार के पार पहुंच गई है। इसके बाद भी कोविड-19 संक्रमण का कोई स्थाई हल नहीं निकल पाया है।
इसी के चलते कई प्रकार के शोध भी सामने आए हैं, जिनमें से एक में ये दावा किया गया है कि कोविड-19 संक्रमण से रिकवर होने के बाद भी लोग क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम के शिकार हो सकते हैं, जिसका कोई स्थाई इलाज ही नहीं है। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि वायरस से जान भले बच जाए, लेकिन ये अपने पीछे ऐसी बीमारी छोड़कर जा सकता है, जिसका दंश आपको सारी उम्र झेलना पड़ सकता है।
खबर के मुताबिक, यूएसए के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रेवेंशन सेंटर ने दावा किया है कि कोविड-19 से रिकवर हुए 35 प्रतिशत लोगों में क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम मिला है, जो बहुत चिंताजनक बात है। ये रिपोर्ट 24 जुलाई तक के मामलों के शोध के बाद तैयार की गई है।
CDC ने वायरस से स्वस्थ हुए 229 लोगों के बीच ये शोध किया, जिसमें से 35 फीसदी लोग क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम से पीड़ित पाए गए। इस सिंड्रोम का कोई एक लक्षण नहीं है। सबमें इसके कई और समस्याएं एक साथ देखी गई। इस परेशानी के ठीक होने में कई बार दशकों का समय लगता है और कई गंभीर बीमारियों से इलाज के बाद ये सिंड्रोम लोगों में पाया जाता है। यानि कि कोविड-19 संकट इस क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम को बढ़ाने वाले एक और वजह के रूप में ही प्रकाश में आई है।