अमेरिका के बहकावे में आकर यूक्रेन कर बैठा बड़ी गलती, अब भुगतने पड़ रहे अंजाम

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रूस और यूक्रेन के मध्य जंग के 13 दिन हो गए और समूचा यूरोप इसकी आग की लपटों को महसूस कर रहा है। इस जंग की वजह से यूक्रेन के पड़ोसी देशों में रिफ्यूजियों की संख्‍या 17 लाख को भी पार कर चुकी है।

Ukraine Crisis

वहीं यूक्रेन में इस जंग की वजह से भारी नुकसान हुआ है। JNU की प्रोफेसर अनुराधा शिनोए मानती हैं कि इस युद्ध की वजह से यूक्रेन कई दशक पीछे चला गया है। हालांकि, ये पहले से ही दिखाई दे रहा था कि रूस के आगे यूक्रेन कुछ भी नहीं है। रूस के सामने उसकी सैन्‍य शक्ति भी न के ही बराबर है। इसके बाद भी पश्चिमी देशों और अमेरिका के बहकावे में आकर यूक्रेन गलती कर बैठा।

क्या चाहता है रूस

प्रोफेसर शिनोए ने बताया कि रूस चाहता तो अपनी वायु सेना को इस युद्ध में उतार कर दो दिन में ही यूक्रेन को जीत सकता था। लेकिन उसने ऐसा इसलिए नहीं किया क्‍यों‍कि वो नहीं चाहता था कि यूक्रेन को बर्बाद किया जाए। रूस पहले से ही कहता आया है कि उसका मकसद यूक्रेन को बर्बाद करने का नहीं है। वो केवल यही चाहता है कि वो अमेरिका की ओर न जाए। रूस चाहता है कि वो यूक्रेन की सैन्‍य शक्ति को नष्‍ट कर दे। इसके पीछे रूस की सिर्फ इतनी ही सोच है कि वो यूक्रेन को अमेरिका के साथ जाने से रोक सके।

जेएनयू के सेंटर फार रशियन कल्‍चर की प्रोफेसर का ये भी कहना है कि वायु सेना के उतारने से ये एक फुलफ्लैश्‍ड युद्ध कहा जाने लगता, जबकि रूस इसको अब तक मिलिट्री आपरेशन का नाम दे रहा है। इन दोनों में ही काफी अंतर है। रूस के पास में पूरी क्षमता है। वो नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो की गोद में बैठ जाए और इसकी वजह से उसकी अपनी सुरक्षा को खतरा मंडराने लगे।

ज्ञात करा दें कि नाटो की स्‍थापना के बाद से इस संगठन में काफी कुछ बदलाव देखने को मिला है। ये निरंतर अपना विस्‍तार करता आया है। अब ये रूस के काफी करीब आ गया है। ऐसे में यदि यूक्रेन भी नाटो में शामिल हो जाता है तो नाटो के खतरनाक हथियार रूस की सीमा पर आ जाएंगे और युद्ध की स्थिति में ये पल भर में मास्‍को पर निशाना लगा सकते हैं।

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