अनोखा शिव मंदिर, जहां आज भी इंजीनियरों की सोच फेल हो गई है औरंगजेब के हजारों सैनिक भी इसे नहीं तोड़ पाए

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दिल्ली: भारत के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे कई मंदिर हैं, जो अपने इतिहास और अपनी प्राचीन परंपराओं के साथ-साथ अपनी वास्तुकला के लिए दुनिया में पहचाने जाते हैं. इन मंदिरों की वास्तुकला ऐसी है कि आज भी नई तकनीक और विज्ञान की सुविधाओं के बाद भी इस प्रकार की वास्तुकला को साकार करना संभव नहीं है। इन मंदिरों को जिस सोच से बनाया गया है, उसके बारे में कोई तर्क नहीं दिया जा सकता है।

हिंदू धर्म में भगवान और मंदिरों का अपने आप में विशेष महत्व है। हर मंदिर किसी न किसी बात को लेकर सुर्खियों में बना रहता है, फिर चाहे वह मंदिर का डिजाइन हो या वास्तुकला। ऐसा माना जाता है कि केवल भगवान ही ब्रह्मांड को नियंत्रित करते हैं। उसकी इच्छा से ही पृथ्वी पर सब कुछ संभव है। वैसे तो हिंदू धर्म का मानना ​​है कि भगवान हर जगह किसी न किसी रूप में मौजूद हैं, लेकिन भारत की संस्कृति ऐसी है कि आपको जगह-जगह अलग-अलग देवताओं के मंदिर देखने को मिल जाएंगे। यह कई सदियों से चला आ रहा है कि लोग अपनी श्रद्धा से मंदिरों का निर्माण करते हैं।

आपने भक्तों द्वारा बनाए गए शिव मंदिरों के बारे में तो बहुत सुना होगा लेकिन आज हम आपको ऐसे ही एक अनोखे शिव मंदिर के बारे में बता रहे हैं। इस मंदिर की मान्यता है कि इसे अलौकिक शक्तियों ने बनवाया था। ये है एलोरा का कैलाश मंदिर, जो औरंगाबाद में केव नंबर 13 में है। यह मंदिर बहुत ही विशाल और अद्भुत है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर को ऊपर से नीचे तक एक बड़े पहाड़ को तराश कर बनाया गया है। जो आज के दौर में भी संभव नहीं लगता। मंदिर निर्माण के समय से लेकर आज तक रहस्य बना हुआ है। इस मंदिर का एक ऐसा रहस्य है जहां विज्ञान भी इस मंदिर के रहस्यों को नहीं सुलझा पा रहा है।

ऐसा कहा जाता है कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद की एलोरा गुफाओं में इस प्रकार का मंदिर भारत में अकेला है। इस मंदिर को केवल एक ही चट्टान को काटकर और तराश कर बनाया गया है। एलोरा का कैलाश गुफा मंदिर जिसे बनने में सिर्फ 18 साल लगे थे। लेकिन जिस तरह से इस मंदिर को डिजाइन किया गया था, उसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके निर्माण में करीब 100-150 साल लग सकते हैं। 276 फीट लंबे और 154 फीट चौड़े इस मंदिर की खास बात यह है कि इसे सिर्फ एक चट्टान को काटकर बनाया गया है। यह मंदिर दो या तीन मंजिला इमारत के बराबर है। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल की गई चट्टान का वजन करीब 40 हजार टन था।

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि यहां आने वाले भक्त को कैलाश पर्वत पर जाने के समान फल मिलता है। इसलिए जो लोग कैलाश नहीं जा पाते हैं, वे यहां दर्शन के लिए आते हैं। इस अद्भुत शिव धाम को बनाने में 100 साल से भी ज्यादा का समय लगा था। इसका निर्माण कार्य राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम ने मलखेड में 757-783 ई. इसे बनाने में करीब 7000 मजदूरों ने दिन-रात मेहनत की।

इस मंदिर में देश-विदेश से सैकड़ों शिव भक्त आते हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि यहां एक भी पुजारी नहीं है। आज तक कभी पूजा नहीं हुई। यूनेस्को ने इस जगह को 1983 में ही ‘वर्ल्ड हेरिटेज साइट’ घोषित कर दिया था। कैलास मंदिर दुनिया में अपनी तरह की एक अनूठी वास्तुकला है, जिसे 757-783 ईस्वी में मलखेड में राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम ने बनवाया था। यह एलोरा जिले औरंगाबाद में स्थित लयन-श्रृंखला में है।

इस मंदिर को पूरे पहाड़ को एक मूर्ति की तरह तराश कर उकेरा गया है और इसे द्रविड़ शैली दिया गया है। कुल मिलाकर 276 फीट लंबे, 154 फीट चौड़े इस मंदिर को सिर्फ एक चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसका निर्माण ऊपर से नीचे तक किया जाता है। इसके निर्माण के दौरान चट्टान से अनुमानित 40 हजार टन पत्थर निकाले गए थे।

इसके निर्माण के लिए पहले खंड को अलग किया गया और फिर इस पर्वत खंड को अंदर और बाहर से काटकर 90 फीट ऊंचा मंदिर बनाया गया है। मंदिर के अंदर और बाहर मूर्तियों और सजावट से भरा हुआ है। इस मंदिर के प्रांगण में तीन तरफ कोठरियों की कतार थी, जो एक पुल के द्वारा मंदिर के ऊपरी हिस्से से जुड़ी हुई थी। अब यह पुल गिर गया है। सामने खुले मंडप में एक नंदी है और उसके दोनों ओर विशाल हाथी और स्तंभ हैं।

मंदिर भगवान शिव का है। कुछ वैज्ञानिक इस मंदिर को 1900 साल पुराना मानते हैं। और कुछ वैज्ञानिक इस मंदिर को 6000 साल से भी ज्यादा पुराना मानते हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस रहस्यमयी मंदिर को ईंटों और पत्थरों को मिलाकर नहीं बनाया गया है, बल्कि इस मंदिर को सिर्फ एक पत्थर को तोड़कर बनाया गया है। यानी सिर्फ एक पत्थर को तराश कर एक बहुत बड़ा मंदिर बनाया गया है।

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