UP Kiran Exclusive: पत्रकारों की हत्या या हमले के बाद ही सरकारें क्यों जागती हैं

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शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार
कहने को तो सार्वजनिक मंचों पर केंद्र या राज्य सरकारें पत्रकारिता या मीडिया को ‘लोकतंत्र का चौथा स्तंभ’ कहकर इस पेशे से जुड़े मीडियाकर्मियों को हमेशा प्रशंसा और सम्मान करती आई है, लेकिन इसके उलट पत्रकारों को कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि हम जिस चौथे स्तंभ के सिपाही हैं वह इतना कमजोर है कि कोई भी मुट्ठी भर का अपराधी हमें आकर कुचल देता है । पत्रकारों पर हमले, धमकी देना, हत्या कर देना आदि कई मामले ऐसे रहते हैं कि वह दबकर ही रह जाते हैं । पत्रकारों पर हमले या हत्या के एकाध मामले ही ऐसे होते हैं जो खबर बनते हैं । ऐसी घटनाओं को मीडियाकर्मी और विपक्षी पार्टियां, या सोशल मीडिया पर निंदा की जाती है तब जाकर सरकारें जागती हैं । हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की । एक अखबार से जुड़े पत्रकार विक्रम जोशी की बीच सड़क पर बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी।

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पत्रकार की हत्या के बाद जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बसपा प्रमुख मायावती, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला समेत तमाम मीडिया से जुड़े लोगों और सोशल मीडिया ने इस घटना की जमकर निंदा की और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधा । उसके बाद उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने आनन-फानन में मृतक पत्रकार विक्रम जोशी के परिजनों को आर्थिक सहायता देने का एलान करना पड़ा ।

सीएम योगी ने कहा कि विक्रम जोशी के परिवार को 10 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार ने मृतक पत्रकार की पत्नी को नौकरी और बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का आदेश दिया है। मामले में मुख्यमंत्री योगी ने गाजियाबाद के कुछ पुलिसकर्मियों को निलंबित भी कर दिया है । सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर यह फैसले, राज्य सरकारोंं या पुलिस-प्रशासन द्वारा पहले क्यों नहीं लिए जाते हैं ? पहले ही राज्य के मुख्यमंत्री पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सख्त कानून बना दे तो ऐसी नौबत ही न आए ।‌

इस बार भी पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या के बाद मामला बढ़ा, जब की गई घोषणा–
गाजियाबाद में एक अखबार के पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या करने के बाद पूरे देश भर में मीडिया जगत से जुड़े लोगों के साथ विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने भी घटना की कड़ी निंदा की । लचर सुरक्षा व्यवस्था के बाद उत्तर प्रदेश सरकार की हुई किरकिरी के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे मामले में एक्शन लिया । गाजियाबाद एसएसपी ने प्रताप विहार चौकी इंचार्ज राघवेंद्र सिंह को निलंबित कर दिया । पुलिस ने घटना में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया । पुलिस की लापरवाही को लेकर सीओ प्रथम को विभागीय जांच सौंपी है।

यह है पूरा मामला
विक्रम जोशी ने भांजी के साथ छेड़खानी की पिछले दिनों शिकायत की थी। इसी के बाद से बदमाश बौखलाए हुए थे। सोमवार देर रात अधिकार विक्रम जोशी इसकी शिकायत करने पुलिस से जा रहे थे उसी दौरान रास्ते में बदमाशों ने पत्रकार को गोली मार दी थी । वारदात के समय बाइक पर पत्रकार की दो बेटियां भी बैठी थीं। इलाज के दौरान जोशी की बुधवार सुबह मौत हो गई ।‌ दरअसल, गाजियाबाद में पत्रकार ने अपनी भांजी के छेड़ने की तहरीर पुलिस को दी थी । पुलिस ने न उसमें कार्रवाई की और न ही किसी की गिरफ्तारी की । इसके बाद तहरीर देने से गुस्साए बदमाशों ने सोमवार की देर रात पत्रकार को गोली मार दी थी ।

केंद्र या राज्य सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बनाना होगा कोई कानून—
केंद्र या राज्य सरकारों के द्वारा पत्रकारों की सुरक्षा और उनके जीवन यापन को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं जरूर की जाती है लेकिन अभी तक इसमें कोई कानून या योजनाएं नहीं बन सकी है । तभी आज देश का मीडियाकर्मी अपने आप को असुरक्षित महसूस करता है । यही नहीं आए दिन देश भर में छोटे और बड़े पत्रकारों पर अपराधी हमला करने से नहीं चूकते हैं । जब मामला ज्यादा बढ़ जाता है तभी सरकारें पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर आश्वासन तो देती है लेकिन अभी तक इस पर एक राय नहीं बन पाई है ।

प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडियाकर्मी दिन-रात अपनी जान जोखिम में डालकर अपनी ड्यूटी करने में लगे रहते हैं । पिछले कुछ समय से पत्रकारों पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं । आपको बता दें कि मीडियाकर्मियों के लिए यूपी सुरक्षित नहीं रहा । क्योंकि, 2013 से लेकर अभी तक उत्तर प्रदेश में 10 से भी अधिक पत्रकारों की हत्या हो चुकी है । लोकसभा में पेश राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से अब तक देश में पत्रकारों पर सबसे ज्यादा हमले उत्तर प्रदेश में हुए है । दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश और तीसरे स्थान पर बिहार है । अब सरकारों को घोषणाओं से काम नहीं चलेगा बल्कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई सख्त कानून बनाना पड़ेगा, तभी पत्रकारों की हत्या और हमले रुक पाएंगे।

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