उत्तर प्रदेश ॥ समाजवादी पार्टी के एक कार्यकर्ता ने अपने खून से यह पत्र पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लिखा है कि वह गरीब है और अपनी बहन का इलाज कराने में असमर्थ है, उसे पीजीआई या केजीएमयू में भर्ती करा दिया जाये। वह युवजन सभा का नेता है तो अखिलेश को खून से चिट्ठी लिख दी। सपा या सरकार के लोग संज्ञान ले लेंगे, जो संभव होगा मदद भी कर देंगे।
लेकिन यह पत्र उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य सिस्टम का आईना है। आमजन का दर्द है। गरीब की तकलीफ है। सरकारें बदलती हैं, लेकिन यह सिस्टम नहीं बदलता। सिस्टम बस कागजों पर ही बेहतर होता है। काम कागजों पर ही बोलता है। मिनी पीजीआई सैफई में ही बनाता है।
बीते 70-72 साल में हम बस यहीं तक आये हैं कि अगर हम बीमार हो जायें तो बिना सोर्स सिफारिश कायदे के किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती नहीं मिलेगी, भर्ती मिल भी गई तो खेत खलिहान बेचना पड़ेगा। इसके लिये हमारे नेता ही नहीं बल्कि खून से पत्र लिखने वाले ये भाई भी जिम्मेदार हैं, जो अपने नेताओं पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं और उनकी गलत बात में भी जवानी कुर्बान करने को तैयार रहते हैं।
अगर ये अपनी पार्टी या नेता से स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दे पर सवाल पूछ सकते तो एक मिनी पीजीआई आजमगढ़ में भी बन सकता था। योगी सरकार में भी स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है, क्योंकि सिस्टम में धोखेबाज ही बैठे हैं। एनआरएचएम में घोटाला करने वाले ही यहां वहां जमे पड़े हैं। फर्क बस इतनी ही हुआ है कि योगी संवदेनशील हैं और कोशिश कर रहे हैं। योगीराज में गंभीर मरीजों को आर्थिक मदद भी मिल रही है।
गोरखपुर में सुधार हुआ, लेकिन यह सुधार पूरे राज्य में किये जाने की जरूरत है ताकि किसी को लखनऊ, कानपुर, गोरखपुर, सैफई ना भागना पड़े, उसे आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर, मऊ में ही बेहतर इलाज मिल जाये। खून से पत्र ना लिखना पड़े। और क्या पता खून से पत्र लिखने का भी कोई फायदा ना हो, क्योंकि वो किसी पार्टी का कार्यकर्ता ना होकर आम आदमी हो। वैसे, अखिलेश ने अपने कार्यकाल में मेडिकल कालेज पर काम बेहतर किया था, इसमें कोई शक नहीं है।