धर्म-संस्कृति के नाम पर संस्कृति विभाग व अयोध्या शोध संस्थान में लूट

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उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग और उससे संबद्ध अयोध्या शोध संस्थान का कोई पुरसाहाल नहीं है। संस्थान के निदेशक ही संस्थान को लूट रहे हैं। निदेशक डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह, जिनकी नियुक्ति भी संदिग्ध है, अपने लंबे कार्यकाल में भ्र्ष्टाचार के पर्याय बने हैं। साल 2013 के सैफई महोतसव से लेकर गत फ़रवरी माह में आगरा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के स्वागत समारोह तक विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उन्होंने जमकर कमाई की। साल 2013 में भ्र्ष्टाचार के आरोपों में उन्हें निलंबित भी किया जा चूका है।

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डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह प्रथम प्रतिनियुक्ति की वर्ष और किस प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत हुई, आज भी संदेह के घेरे में है। जानकारी के मुताबिक़ डॉ सिंह की नियुक्ति शासनादेश संख्या -04 (1 ) चार – 2001 04 अप्रैल 2001 द्वारा संस्कृति निदेशालय में उपनिदेशक के पद पर सेवा स्थानांतरण प्रतिनियुक्ति के तहत हुई थी। यह नियुक्ति आदेश शासकीय निमों के विपरीत है। इस नियुक्ति आदेश में गठित चयन समिति की संस्तुति का कोई उल्लेख नहीं है।

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उपनिदेशक के पद पर प्रतिनियुक्ति प्रक्रिया की पुनरावृत्ति करते हुए शासनादेश संख्या – 8 अयो शो संस्थान /18 -1 (1 )/88 दिनांक 26 अप्रैल 2002 द्वारा डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह की नियुक्ति निदेशक अयोध्या शोध संस्थान के पद पर की गई। इस प्रतिनियुक्ति में भी आवश्यक नियमों का पालन नहीं किया गया। इसी क्रम में वर्ष 2002 में डॉ सिंह को आमेलित किया गया। इन सारी प्रक्रियाओं में अयोध्या शोध संस्थान के रेगुलेशन की पूरी तरह से अवहेलना की गई।

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अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक की नियुक्ति सिर्फ पांच वर्षों के लिए की जाती है। इस अवधि के पूरा होने पर उक्त पद के लिए पुनः विज्ञापन प्रकाशित कियाक जान अनिवार्य है। इसके बाद सारी प्रक्रिया का पालन करते हुए नए व्यक्ति की नियक्ति कार्यकारिणी द्वारा की जाती है। डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह के मामले में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। डॉ सिंह वर्तमान में अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक के साथ ही संयुक्त निदेशक के प्रभार से भी युक्त हैं। इसके अलावा डॉ सिंह निदेशक जनजाति लोककला संस्कृति संस्थान तथा कबीर अकादमी को स्वेच्छाचारिता से वहला रहे हैं।

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डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह अपने कार्यकाल में भ्र्ष्टाचार के मालों में कुख्यात रहे। मई 2013 में हुए सैफई महोत्स्व में भ्र्ष्टाचार के मामले में वह निलंबित भी हो चुके हैं। डॉ सिंह ने भाली के लिए हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल की थी। बाद में वह मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव से नजदीकियों के चलते पद पर भाल हो गए, जबकि हाईकोर्ट में मुकदमा अभी भी लंबित है।

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इसी तरह गत फरवरी माह में आगरा में ट्रम्प के स्वागत समारोह की जिम्मेदारी डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह को सौपी गई थी। डॉ सिंह ने यहां पर कलाकारों के भगतान में बड़ा खेल कर दिया। उन्होंने गलत तरिके से संस्कृति विभाग के संयुक्त निदेशक के पद का दुरूपयोग करते हुए राशि लोककला संस्कृति संस्थान के खाते में स्थानांतरित कर ली और मनमाने तरिके से कलाकारों व पार्टियों का भुगतान कर दिया।

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डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह आगामी 30 जून को रिटायर्ड होने वाले हैं। लेकिन डॉ सिंह राम की वैश्विक यात्रा कार्यक्रम के जरिये अपना सेवा विस्तार कराने की जुगत में लगे हैं।

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