वट सावित्री व्रत : पूजा का समय व व्रत विधि

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सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागिनें अपने अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। हिंदू पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। इस साल यह तिथि 10 जून दिन गुरुवार को पड़ रही है। अमावस्या तिथि 09 जून को दोपहर o1 बजकर 57 मिनट से शुरू होगी और 10 जून को शाम 04 बजकर 20 मिनट पर समाप्त होगी। व्रत का पारण 11 जून को किया जाएगा। इस बार महत्वपूर्ण बात यह है कि वट सावित्री व्रत के दिन वृषभ राशि में सूर्य, चंद्रमा, बुध और राहु विराजमान रहेंगे। यह योग बहुत ही शुभ माना जाता है।

 

ज्योतिषविदों के अनुसार शुक्र को सौभाग्य व वैवाहिक जीवन का कारक माना जाता है। इस दिन वृषभ राशि में चतुर्ग्रही योग बनना बेहद महत्वपूर्ण है। चार ग्रहों के एक राशि में होने पर चतुर्ग्रही योग बनता है। इस योग से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है और समस्त कष्टों व दुखों से मुक्ति मिलती है। पहली बार वट सावित्री व्रत रख रही सुहागिनों के लिए तो इस बार का पर्व जीवन में तरक्की के मार्ग प्रशस्त करने वाला है।

वट सावित्री व्रत के पूजन में बांस की लकड़ी से बना बेना (पंखा), अक्षत, हल्दी, अगरबत्ती या धूपबत्ती, लाल-पीले रंग का कलावा, सोलह श्रंगार, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए सिंदूर और लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए, पांच प्रकार के फल, बरगद का पेड़ और प्रसाद के लिए खीर, मिष्ठान आदि चीजें लगती हैं।

वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए सुहागिनें एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखती हैं और इसे पवित्र कपड़े से ढक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर पुष्प, कुमकुम और अक्षत चढ़ाती हैं। इसके बाद कच्चे सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात फेरे लगाती हैं और चने गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है। इसके बाद सुहागिनें सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती हैं।

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