फर्स्ट व सेकेंड वर्ल्डवॉर का गढ़ रहे यूरोप में भारी विवाद से एक बार फिर से युद्ध का आदेशा नजर आने लगा है। रश्यिा व बेलारूस मिलकर पोलैंड में शरणार्थियों (refugees) को बलपूर्वक ढकेलने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। तो वहीं दूसरी तरफ पोलैंड ने इससे निपटने के लिए हजारों की संख्या में हथियारों से लैस फौजियों को सरहग पर तैनात कर दिया है।
दरअसल, कोविड-19 पीरियड के पश्चात वैश्विक परिदृश्य में अपने को निर्णायक भूमिका में मानने वाले मुल्कों में रूस भी आता है। रूसी प्रेसिडेंट पुतिन ने विश्व की सबसे उभरती सामरिक-आर्थिक ताकत चीन से एक अघोषित डील कायम कर ली है जो कि यूएसए एवं यूरोप के कमजोर पड़ते और बिखरते गठबंधन के विरूद्ध है।
आपको बता दें कि ब्रेक्जिट और डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की नीति ने नाटो और यूरोप दोनों को सामरिक रूप से कमजोर किया है। यूरोप के कई ऐसे मुल्क हैं जो उभरती हुई शक्ति चीन को भी खफा नहीं करना चाहते हैं। यूरोप में केवल ब्रिटेन ही पूरी ताकत के साथ चीन के सीनाजोरी वाले अंदाज का विरोध करता आया है। वो अमरीका तथा आस्ट्रेलिया के साथ महत्वाकांक्षी AUKUS गठबंधन में भी शामिल है मगर इस गठबंधन ने फ्रांस को जिस प्रकार से अपमानित महसूस कराया है, उसने नाटो के ताबूत में नई कीलें ही ठोंकी हैं।
गौरतलब है कि इतिहासकार और विशेषज्ञ इस बात की तरफ भी ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं कि सेकेंड वर्ल्डवॉर की शुरुआत भी पोलैंड में जर्मन हस्तक्षेप की वजह से हुई थी, इसलिए कहीं ये चिंगारी भी थर्ड वर्ल्डवॉर का कारण न बन जाए। हालांकि अभी ये मसला ऐसी शक्ल लेता नहीं दिखता पर यूरोप तथा रूस के टकराव की पृष्ठभूमि बनती जरूर नजर आ रही है जिसके नतीजे आनेवाले समय में खतरनाक हो सकते हैं।