जब लालजी टंडन लखनऊ से चुनाव जीतने के लिए अटलजी की ‘चरण पादुका’ ले आए थे

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शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

भारतीय जनता पार्टी में प्रथम पंक्ति के नेता रहे मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने 85 वर्ष की आयु में मंगलवार सुबह दुनिया को अलविदा कह दिया । पिछले एक महीने से वे बीमार चल रहे थे । दिवंगत टंडन भाजपा में प्रथम पंक्ति के नेता माने जाते थे लेकिन उनकी राजनीति उत्तर प्रदेश, विशेष तौर पर लखनऊ तक की सीमित थी । इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि लालजी को लखनऊ से बहुत प्यार था । सही मायने में उनकी लखनऊ में जुझारू नेता के रूप में पहचान की जाती थी । अब बात करेंगे पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की । टंडन की भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान का सबसे बड़ा कारण अटल जी का करीबी होना था । अटल जी ने वर्ष 1996, 98, 99 और आखिरी चुनाव 2004 में जब लड़ा था उसका पूरा जिम्मा लालजी टंडन नहीं संभाला था । वाजपेयी जी लालजी पर बहुत विश्वास और भरोसा करते थे।

atal and lalji tandon

अपने सांसद या प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान अटल जी जब-जब लखनऊ जाते तब लालजी टंडन को सबसे पहले बुलाया जाता था । अटल जी लालजी टंडन से सभी प्रकार की बातें किया करते थे । राजनीति के अलावा हास-परिहास और साहित्य विषयों पर दोनों की जबरदस्त पकड़ थी । सही मायने में उत्तर प्रदेश में वाजपेयी के उत्तराधिकारी माने जाते थे लालजी टंडन । वर्ष 2009 में जब अटल बिहारी अपने गिरते स्वास्थ्य की वजह से चुनाव नहीं लड़े तब लालजी टंडन को पार्टी ने लखनऊ से अपना लोकसभा उम्मीदवार बनाया था । लखनऊ से अपना चुनाव प्रचार करने से पहले लालजी टंडन दिल्ली जाकर अटल जी की ‘चरण पादुका’ ले आए थे, लखनऊ आकर टंडन ने चुनाव प्रचार की रैलियों के दौरान लोगों से कहा था कि ‘यह चुनाव अटलजी ही लड़ रहे हैं, उनको जिता देना’ । वर्ष 2009 के चुनाव में लालजी टंडन लखनऊ से विजयी हुए थे । आज भले ही लालजी टंडन इस दुनिया में नहीं है लेकिन लखनऊ वासियों को अपने जुझारू नेता हमेशा याद आएंगे।

 

अटल जी और लालजी टंडन का अल्हड़ स्वभाव लखनऊ में ही बसता था–

बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी और लालजी टंडन ने राजनीति में 50 साल एक साथ काम किया था । टंडन कहते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी मेरे बड़े भाई और पिता हैं। लालजी टंडन कोई भी बड़ा काम अटलजी के आशीर्वाद से शुरू करते थे। दोनों के अल्हड़ स्वभाव में लखनऊ ही बसता था । 60 वर्षों की दोस्ती में तमाम उतार-चढ़ाव आए लेकिन दोनों के संबंध में कोई फर्क नहीं पड़ा । अटल जी अपने आखिरी समय तक लालजी टंडन को वैसे ही स्नेह और प्यार देते रहे जैसे शुरू में दिया करते थे। सही मायने में लालजी टंडन अटल जी को अपना राजनीतिक गुरु भी मानते थे । अटल जी को लखनऊ के चौक की ठंडाई हो चाट और कचौड़ी बेहद पंसद थी। जब-जब अटल जी लखनऊ आते तो वे लालजी टंडन से पहले ही कह दिया करते थे कि चाट और कचौड़ी का इंतजाम कर लीजिएगा । अटल जी कहते थे कितना भी व्यस्त रहूं, टंडन जी आपकी कचौड़ी खाए बिना नहीं जाऊंगा।

लालजी टंडन को अपना भाई मानते हुए राखी बांधती थीं बसपा प्रमुख मायावती—

मायावती का भाजपा के नेताओं से हमेशा 36 का आंकड़ा रहा है। सिर्फ लालजी टंडन ही ऐसे थे जिन पर मायावती भरोसा करती थी । यही नहीं बसपा प्रमुख मायावती लालजी टंडन को भाई भी मानती थी और हर वर्ष रक्षाबंधन पर राखी जरूर बांधती थीं ।‌ उत्तर प्रदेश में टंडन ही ऐसे भाजपा के नेता थे इनका बसपा प्रमुख बहुत सम्मान करती थी । वर्ष 1997 में भाजपा और बसपा का गठबंधन लालजी टंडन की वजह से ही संभव हो पाया था । मायावती मुख्यमंत्री के काल में लालजी टंडन को नगर विकास मंत्री बनाया गया था । उस दौर में भी टंडन की प्रदेश में खूब तूती बोलती थी । दोनों पार्टियों की करीबी और मित्रता जैसे संबंध बनाने में टंडन जी का बड़ा हाथ था। मायावती और उनके बीच बहुत अच्छे रिश्ते थे। एकाध मौके छोड़कर लालजी का मायावती से उनके बहुत मधुर संबंध थे। टंडन जी अपनी तरफ से हमेशा कोशिश करते थे कि सौहार्दपूर्ण संबंध बने रहें।

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