चाहे मालदार हो या गरीब, ऐसे लोगों पर वाजिब है सदका-ए-फित्र, क्लिक कर जानिए

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रमजान के मुबारक माह पर जिस तरह किसी विशेष अवसर के आने पर इंसान अपने घरों को सजाते हैं। उसी तरह रमजान आने पर रोजेदारों के लिये रब की बनाई हुई जन्नत(स्वर्ग) खास तौर पर सजा दी जाती है। जब शैतानों को कैद करता है। हर तरफ से रहमतों की बारिश, लोगों की बख्शिश और मग़फिरत के साथ-साथ जहन्नुम से आजादी मिल रही होती है।

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तभी मुसलमान को तीस रोजे रखने पर ईद का तोहफा रब अपने नेक बन्दों को अता करता है, रमजान माह में हमसे इबादत में किसी तरह की कोताही न हो और रब के वहा उसकी कुबूलियत हो जाये। इसी को लेकर मन मे कुछ सवालात भी उठते है। जिनका माकूल जवाब हमे कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी की अल-शरिया हेल्पलाइन के सदस्य मुफ्ती सऊद मुर्शिद कासमी के जरिए बखूबी मिलते आ रहे है।

उन्होंने बताया कि अगर जन्नत (स्वर्ग) जाना चाहते हो तो हमें काम भी तो नेक करने होंगे। गुनाहों से तौबा करनी होगी। इसलिए रमजान के अंतिम 6-7 दिन और बचे है। अगर हमने इस मुबारक महीने में रब की फरमाबरदारी की और गुनाहों से हमने अपने आपको महफूज़ रख लिया तो वाकई रब की रजा के हम सब मुस्तहक़ हो जाएंगे। कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी कानपुर की अल-शरिया हेल्पलाइन से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर।

प्रश्न:-क्या सदका ए फित्र सिर्फ रोज़ेदार पर वाजिब है, अगर कोई मालदार रोजा ना रखे तो उसपर फित्रा वाजिब नहीं है ?

उत्तर:- सदका ए फित्र हर साहेबे निसाब पर वाजिब है लिहाजा अगर कोई मालदार किसी कारण से रोजा नहीं रख सका तो उससे सदका फित्र माफ नहीं होगा बल्कि उसपर भी फित्रा अदा करना वाजिब है, अदा ना करने की सूरत में वह गुनाहगार होगा।

प्रश्न:- जकात की रकम से इफ्तारी का इंतेजाम करना कैसा है? इससे जकात अदा होगी या नहीं?
उत्तर:- इफ्तारी करने वाले अगर जकात के पात्र (मुस्तहिक़) हैं और इफ्तारी की सामग्री उन्हें मालिक बनाकर उनके हाथों में दी जाये तो इस तरह इफ्तारी का इंतेजाम करना जायज है और इससे जकात भी अदा हो जायेगी, लेकिन अगर इफ्तार करने वाले जकात के पात्र नहीं हैं तो फिर उनके लिये जकात की रकम इफ्तारी का इंतेजाम करना जायज नहीं है, इस तरह जकात अदा नहीं होगी।

प्रश्न :- कुछ लोगों से सुना है अगर दूसरे की दी हुई चीज से इफ्तार की जाये तो रोजे का सवाब इफ्तार कराने वालों को मिल जाता है, क्या यह सही है ?
उत्तर:- यह सरासर गलत है, हदीस में है कि रोज़ा इफ्तार कराने वाले को रोजेदार के बराबर सवाब दिया जाता है और खुद रोजेदार के सवाब में कोई कमी नहीं की जाती, लिहाजा यह समझना कि दूसरी की चीज से इफ्तार करने की सूरत में रोजेदार का सवाब इफ्तार कराने वाले को मिल जायेगा या उसके सवाब में कमी आ जायेगी बिल्कुल गलत बात है।

प्रश्न:-तरावीह की दो रकअत किसी वजह से फास्दि हो गयी थी लेकिन उस वक़्त पता नहीं चला अगले दिन फासिद होने के बारे में मालूम हुआ तो अब उसकी कजा है या नहीं?
उत्तर:- जी हां! इन दो रकअतों की कजा लाजिम है, अलबत्ता यह कजा अकेले की जायेगी, जमाअत के साथ नहीं की जाये।

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