ऐसे करें मां गंगा की पूजा, सभी मनोकामनाएं होंगी पूरी

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भारतीय समाज उत्सवजीवी समाज है। यहां प्रकृति के हर अवयव की पूजा होती है। पहाड़ो, नदियों, सरोवरों और समुद्र की पूजा होती है। लोग आकाश और ग्रहों की भी आराधना करते हैं। फिर गंगा तो सुरसरिता है। वैसे तो गंगा सदा वंदनीय हैं, लेकिन, उनके अवतरण दिवस अर्थात गंगा दशहरा पर्व पर सनातनी लोग विशेष पूजा करते हैं। गंगा दशहरा के दिन लोग शुभ संकल्प लेकर ही डुबकी लगाते हैं। जहां पर गंगा नहीं हैं, वहाँ के लोग नजदीक स्थित नदी या फिर तालाब को ही गंगा मानकर उसकी पूजा कर उसमे स्नान करते हैं। शास्त्रों में गंगा स्नान और पूजन की विधि बताई गई है।

शास्त्रों के अनुसार गंगा तट से दूर के लोगों अथवा जो गंगा तट तक न जा सकने वाले लोग समीप के किसी भी जलाशय या घर के शुद्ध जल से स्नान करके स्वर्ण आदि के पात्र में त्रिनेत्र, चतुर्भुज, सर्वावय विभूषित, रत्न कुम्भधारिणी, श्वेत वस्त्रों से सुशोभित तथा वर और अभय मुद्रा से युक्त श्री गंगाजी की प्रशान्त मूर्ति अंकित करें अथवा किसी साक्षात मूर्ति के करीब बैठकर ‘ओम नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः’ से आह्वान आदि षोड्शोपचार पूजन करें।

षोड्शोपचार पूजन के बाद ‘ओम नमो भगवते ऐं ह्रीं श्रीं हिलि, हिलि, मिली मिली गंगे मां पावय पावय स्वाहा’ मंत्र से पांच पुष्पांजलि अर्पण करके गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ का और जहां से उनका उद्भव हुआ है, उस हिमालय का नाम मंत्र से पूजन करें। फिर दस फल, दस दीपक और दस सेर तिल का गंगायै नमः कहकर दान करें। साथ ही घी मिले हुए सत्तू और गुड़ के पिण्ड जल में डालें। यदि सामर्थ्य हो तो सोने का कछुआ, मछली और मेढक आदि का भी पूजन करके जल में विसर्जित करें।

शास्त्रों के अनुसार मां गंगा के पूजन के समय कोई शुभ संकल्प लेकर दस बार डुबकी लगानी चाहिए। उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर घी से चुपड़े हुए दस मुट्ठी काले तिल हाथ में लेकर जल में डाल दें। इसके बाद इस मंत्र के साथ मां गंगा की प्रतिमा का पूजन करें :

‘नमो भगवत्यै दशपापहरायै गंगायै नारायण्यै रेवत्यै, शिवायै अमृतायै विश्वरूपिण्यै नन्दिन्यै ते नमो नमः’।

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