Uttarakhand के इस गांव में वर्जित है हनुमान की पूजा, लाल कपड़े तक का नहीं करते इस्तेमाल, जानें पूरी कथा

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गोपेश्वर। उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली जिले के जोशीमठ विकास खंड के सीमावर्ती क्षेत्र में एक ऐसा गांव है जहां पर आज भी हनुमान की पूजा करना और लाल वस्त्र पहनना वर्जित माना जाता है। इस गांव का नाम द्रोणगिरी है। जो समुद्रतल लगभग 3622 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।द्रोणगिरी गांव के लोगों का कहना है कि त्रेता युग में राम रावण युद्ध के समय लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमान जी सुषेन वैद्य के कहने पर लंका से संजीवनी बूटी लेने के लिए द्रोणगिरी पर्वत पर आये थे। उस वक्त वे पूरा पहाड़ उखाड़ कर अपने साथ लेकर चले गए थे। (Uttarakhand)

वैद्य के अनुसार संजीवनी बूटी रात को चमकती है। ऐसे में हनुमान ने संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाए और उन्होंने पूरेद्रोणगिरी पर्वत को ही उखाड़ दिया। वहां के पर्वत देवता का दायां हाथ तोड़ दिया और वे पर्वत को लेकर के चल पड़े। बीच में तोलमा गांव के पास वहां के हिवांल देवता ने उन्हें रोक कर उनसे पर्वत को ले जाने के बारे में पूछा तो हनुमान जी ने उन्हें पूरी घटना बतायी। इसके बाद उन्होंने उन्हें यहां से तोल कर संजीवनी बूटी उन्हें दी और कहा कि बाकी हिस्से को यहीं छोड़ दो। हनुमान ने वही किया और यहां के ईष्ट देवता को वचन दिया कि राम-रावण युद्ध के बाद वे स्वयं यहां आकर विरजमान हो जायेंगे। तोलता गांव के ऊपर शीर्ष पर आज भी हनुमान पर्वत विराजमान है। गांव के लोगों का मानना है कि हनुमान आज भी यहां निवास करते हैं और वह इस गांव की रक्षा करते हैं। (Uttarakhand)

 118 परिवार रहते हैं द्रोणगिरी गांव में

द्रोणगिरी गांव में आज भी हनुमान की पूजा वर्जित मानी गई है यहां पर लगभग 118 परिवार निवास करते हैं किंतु सड़क मार्ग से दूर होने के कारण यहां हर वर्ष 10 से 15 परिवार जा पाते हैं । यहां पहुंचने के लिए आठ से 10 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है जबकि और सीमांत क्षेत्र का गांव है सरकार सीमांत क्षेत्र विकास निधि की बड़ी धनराशि खर्च करती है, लेकिन यहां सड़क नहीं होने के कारण आधुनिक युग के लोग यहां रहना पसंद नहीं करते यहां दूरसंचार, स्वास्थ्य शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं है। (Uttarakhand)

गांव में ईष्ट देव भूमियाल पर्वत देवता सहित अन्य देवता है उसी की पूजा यहां लोग करते हैं। हनुमान का नाम लेना भी इस गांव में वर्जित है। गांव में लाल वस्त्र भी बहुत कम उपयोग करते हैं। देवता को चढ़ाए जाने वाले वस्त्र भी पीले रंग के होते हैं। यहां पर जब कोई पूजा का आयोजन बड़े स्तर पर होता है, तब यह लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं। इस वर्ष नंदा देवी लाता जात यात्रा का आयोजन हुआ है। इस समय पर गांव में 350 से अधिक लोग आये हुए थे। जबकि यह एक ट्रैक मार्ग का गांव है यहां से बागनी ग्लेशियर की यात्रा की जाती है। यहां नंदी कुंड तीर्थ स्थान है जहां भोटिया जनजाति के लोग अपने पितरों की तीर्थ यात्रा कराते हैं। (Uttarakhand)

यहां पहुंचने के लिए ऋषिकेश से जोशीमठ राष्ट्रीय राजमार्ग से जीप, कार, बस, मोटरसाइकिल से जुम्मा गांव पहुंचना पड़ता है यहां से पैदल यात्रा लगभग शुरू हो जाता है। तीन किलोमीटर रूविग गांव तक मोटर मार्ग कट रहा है। यहां से पैदल खड़ी चढ़ाई का रास्ता पार कर द्रोणगिरी पहुंचा जाता है। यहां से हिमालय के दिव्य दर्शन होते हैं। रुकने के लिए यहां होम स्टे की व्यवस्था तो है। बागनी ग्लेशियर के लिए यहां से गाइड पोर्टर मिल जाते हैं। गांव के निवासी महेंद्र सिंह बताते हैं सड़क मार्ग नहीं होने के कारण अधिकांश लोग यहां नहीं पहुंच पाते हैं और यहां पर सीमित साधन होने के कारण यहां के ग्रामीण भी यहां के लिए बेगाने हो गए हैं। (Uttarakhand)

उन्होंने कहा कि पिछले कई सालों से यहां पर शीतकाल के समय में घरों में चोरी होने लगी है। गांव के लोग अप्रैल-मई में यहां जाता है और अक्टूबर सभी निचले प्रवास क्षेत्रों में आ जाते हैं अपने शीतकाल प्रवास में चमोली जिले के विभिन्न स्थानों में निवास करते हैं। जनदेश संस्था के सचिव लक्ष्मण सिंह नेगी और रघुवीर सिंह ने बताया कि इन दिनों वे भी इस गांव में जनदेश चाइल्ड हेल्पलाइन की ओर से स्वच्छता पखवाड़े के अंतर्गत जागरूकता कार्यक्रम का संचालन कर बच्चों की सहायता के लिए भारत सरकार के की ओर से निशुल्क फोन सेवा 1098 की भी जानकारी एक गोष्ठी के माध्यम से कर रहे हैं। (Uttarakhand)

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